उत्तर प्रदेश के एक हिस्से में होली का नजारा ऐसा भी होता होगा शायद इस बात का अंदाजा देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को नहीं होगा।जी हां हम बात कर रहे हैं शाहजहांपुर की ट्रेडिशनल होली की । बता दें यहां होली आने से कुछ दिन पूर्व ट्रेडिशनल होली मनाने के लिए तैयारियां शुरू कर दी जाती है। जिसमें पुलिस प्रशासन कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सद्भाव और भाईचारे की भावना के अनुरूप मौजूद 40 मस्जिदों को प्लास्टिक शीट से ढका गया ताकि होली के दिन मस्जिद पर रंग इत्यादि पड़ने से किसी प्रकार का माहौल खराब ना हो। यहां की जिस होली की हम बात कर रहे हैं उस होली को खास नाम “जूता मार होली” दिया गया है।
इस खास जूता मार होली का जश्न मनाते हुए जुलूस निकाला जाता है जिसमें लाट साहब यानी अंग्रेजी हुकूमत के ऑफिसर के पुतले को एक भैसागाड़ी में बैठा कर उस पर जूते बरसाए जाते हैं। समाचार एजेंसी पीटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक इस जुलूस को जिन क्षेत्रों से निकाला जाता है वहां मौजूद मस्जिदों को प्लास्टिक शीट से ढक दिया जाता है। साथ ही वहां सुरक्षा व्यवस्था भी मुस्तैद कर दी जाती है।

एसपी द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक जुलूस को देखते हुए अलग-अलग हिस्सों में बैरिकेडिंग की जाती है और कुछ रास्तों को बंद कर दिया जाता है साथ ही इस होली पर्व पर रास्तों में सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए थे। वहीं ड्रोन कैमरे के माध्यम से निगरानी भी रखी जाती है। दरअसल शाहजहांपुर में 18 वीं सदी से जूता मार होली मनाई जाती है और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ गुस्सा प्रकट करने के लिए स्थानीय लोगों ने इस प्रकार की होली की शुरुआत की थी। जब देश को सन 1947 में आजादी मिली तब भी इस ट्रेडीशनल होली को जारी रखा गया। यहां जूता मार होली दो हिस्सों में मनाई जाती है।एक बड़े लाट साहब का जुलूस निकालकर और दूसरी छोटे लाट साहब का जुलूस निकालकर मनाई जाती है।लाट साहब का जुलूस बड़े ही गाजे-बाजे के साथ निकलता है और इस दौरान लाट साहब की जय बोलते हुए होरियारे उन्हें जूतों से मारते हैं।’ इस बार बड़े लाट साहब मुरादाबाद से आए थे और छोटे लाट साहब बरेली के फरीदपुर से पहुंचे थे।जिन्हें कार्यक्रम के समापन के बाद पुरस्कृत कर भेजा गया।
साल 1857 तक हिंदू- मुस्लिम दोनों मिलकर बड़े हर्षोल्लास से होली का पर्व मनाते थे और नवाब साहब जिन्होंने शाहजहांपुर की स्थापना की थी उन्हें हाथी या घोड़े पर बैठा कर घुमाया जाता था। नवाब साहब शाहजहांपुर में रहने वाले हर हिंदू और मुसलमान के प्रिय हुआ करते थे।लेकिन जब अंग्रेजी हुकूमत आई तो अंग्रेजों को उनका यह भाईचारा पसंद नहीं आया।जिसके बाद प्रशासन ने इसका नाम बदलकर लाट साहब कर दिया। लेकिन लोगों के भीतर अंग्रेजों के खिलाफ रोष व्याप्त था जिसे लेकर आज तक इस होली को जूता मार होली के रूप में मनाया जाता है।