आगरा। ‘मेरा रंग दे बसंती चोला मेरा रंग दे बसंती चोला’, यह भले ही एक फिल्मी गीत हो लेकिन इस गीत के बजते ही लोगों के जेहन में उस महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह और उनके दोनों साथी सुखदेव और राजगुरु की शहादत की याद आ जाती है जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपने जीवन का बलिदान हंसते-हंसते दे। आज 23 मार्च है और आज ही के दिन वर्ष 1931 में तीनों महान क्रांतिकारियों को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर चढ़ा दिया था लेकिन भारत मां को आजाद कराने के लिए भारत माँ के तीनों वीर सपूत हंसते-हंसते सूली पर चढ़े और देश में आजादी की आग को शोला बना गए।
अंग्रेज़ अफसर सांडर्स की हत्या के बाद आये आगरा:-
इस महान क्रांतिकारी भगत सिंह का आगरा से भी गहरा नाता रहा है। भारत देश को आजाद कराने के लिए अंग्रेजी हुकूमत से जो लड़ाई छेड़ी गई थी। उस समय अंग्रेज़ अफसर सांडर्स की हत्या के बाद शहीद भगत सिंह आगरा आए थे और नूरी दरवाजे में एक किराए के मकान में अपनी पहचान छुपा कर अपने साथियों के साथ रहे थे। इस दौरान उन्होंने आगरा के कॉलेज में प्रवेश भी लिया था जिससे किसी को कोई शक न हो इसलिए अपने साथियों के साथ भगत सिंह छात्र के रूप में रहे।
छन्नोमल के मकान में रहे भगत सिंह:-
शहीद भगत सिंह लाहौर में अंग्रेजी अफसर सांडर्स की हत्या करने के बाद अपने साथी के साथ आगरा आए। यहां पर उन्होंने लाला छन्नोमल के नूरी दरवाजा स्थित मकान नंबर 1784 को किराए पर लिया और छात्र के रूप में अपने कई दोस्तों के साथ रहने लगे। छन्नोमल ने भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों के पकड़े जाने पर गवाही दी थी जिसमें उन्होंने स्वीकारा था कि ढाई रुपये एडवांस देकर पांच रुपए महीने के लिए भगत सिंह ने मकान लिया था।
आगरा में बनाया गया बम-
अंग्रेजी अफसर सांडर्स की हत्या के बाद जब भगत सिंह अपने साथियों के साथ आगरा आए तो उन्होंने आजादी की लड़ाई को जारी रखा। नूरी दरवाजे स्थित जिस कोठी में वह उस दौरान रहे उस कोठी में उन्होंने असेंबली में धमाका करने के लिए बम तैयार किया था। आगरा और उसके आसपास क्रांतिकारी गतिविधिया बहुत कम थीं। इस वजह से अंग्रेजी हुकूमत का इस ओर ध्यान नहीं था। आगरा में कीठम, कैलाश व भरतपुर का जंगल होने के कारण इन्ही जंगलों में भगत सिंह के साथी बम का परीक्षण करते थे। इसी कोठी में बनाए गए बम को ही उन्होंने अपने साथी के साथ असेंबली में फोड़ा था और अपनी आवाज को अंग्रेजी हुकूमत के कानों तक पहुंचाने के लिए गिरफ्तारी दी थी।
खंडहर में तब्दली हो रही है कोठी-
आजादी के दीवाने सरदार भगत सिंह और उनके साथियों की आगरा में यह कोठी ही एकमात्र निशानी है जो अब खंडहर में तब्दील हो रही है। आजादी के आंदोलन के इतिहास की गवाह बनी यह कोठी जिला प्रशासन की अनदेखी झेल रही है। पेठा कारोबारी राजेश अग्रवाल का कहना है कि कई बार इस कोठी को संरक्षित करने के प्रयास किए गए। आजादी के इतिहास में एक मात्र आगरा की कोठी इतनी महत्वपूर्ण है कि यहां से अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिल गई थी। अगर यह कोठी संरक्षित हो जाए तो हमारी आगे आने वाली पीढ़ी शहीद ए आजम भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों के इतिहास से रूबरू हो सकेगी लेकिन जिला प्रशासन इसे प्राइवेट प्रॉपर्टी कह कर अपना पल्ला झाड़ लेता है।