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बेसहारा भाई-बहनों के लिए आठ साल में भी नहीं पसीजा अफसरों का ‘पत्थर दिल’

by admin
  • पिता की दुर्घटना में हुई मौत, मां को टीबी ने लीला
  • एक भाई और तीन बहनें आठ साल से लड़ रहे रोटी की जंग
  • अब भाई को भी होने लगी खून की उल्टी

आगरा। मां बाप का साया सिर से हटने के बाद पिछले आठ सालों से चार भाई बहन रोटी की जंग लड़ रहे हैं। हर दर पर गुहार लगाने के बाद भी उनको शासन प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली सकी। पिता की दुर्घटना में मौत हो गई तथा मां को टीबी की बीमारी ने छीन लिया। नात नाते रिश्तेदारों ने भी दूरियां बना लीं। इन आठ सालों में किसी अपने ने उनका दर्द नहीं पूछा। रोटी की जद्दोजहद में बच्चों का बचपन खो गया। तीन बहनों के इकलौते भाई को टीबी की बीमारी ने घेर लिया तो वह चिंतित हो उठीं और इलाज के लिए दौड़ लगा दी।

डरा रही टीबी की बीमारी

हम बात कर रहे हैं राजनगर रेलवे लाइन के पास झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले चार भाई बहनों की जो मां-बाप की मौत के बाद अकेले रहते हैं। जिनमें तीन बहने एवं एक भाई है। भाई समझदार हुआ तो उसने जैसे ही कमाना शुरू किया वैसे ही उसको टीबी की बीमारी ने घेर लिया। खून की उल्टी होने पर बहने परेशान हो गईं। वह पहले ही टीबी की बीमारी से मां को खो चुकी हैं इसलिए भाई के लिए चिंतित हैं।

बच्चों की मदद करने वाले चाइल्ड राइट एक्टिविस्ट नरेश पारस को जब बेटियों ने भाई के खून की उल्टी होने की बात की तो वह बच्चे को लेकर एसएन मेडिकल कॉलेज गए जहां उसका इलाज शुरू करा दिया गया है।

शासन प्रशासन से नहीं मिली कोई मदद

बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने बताया कि आठ साल पहले इन बच्चों की मां को टीबी की बीमारी हो गई थी। उनका कोई सगा ना होने के कारण नरेश पारस ने ही इलाज कराया था लेकिन वह बीमारी से जिंदगी की जंग हार गई। उन्होंने इन बच्चों का ख्याल रखने के लिए कहा था तब से वह इनकी देखभाल कर रहे हैं। 2015 में तत्कालीन बाल आयोग की सदस्य ज्योति सिंह ने भी इन बच्चों के झोपड़ी में जाकर मदद का आश्वासन दिया था लेकिन मदद आज तक नहीं मिली। नरेश पारस तथा आसपास के रहने वाले लोग ही इन बच्चों की मदद कर रहे हैं।

इन योजनाओं से मिल सकती है मदद

पिछले दो सालों से भाई ने जूते का काम सीखना शुरू किया। जिससे उसे कुछ पैसों की आमदनी भी होने लगी लेकिन अब दिवाली के बाद तबियत खराब होने के कारण वह काम पर नहीं जा पा रहा है। खून की उल्टी होने पर टीबी की बीमारी का पता चला।

बेसहारा बच्चों के लिए इंटीग्रेटेड चाइल्ड प्रोटक्शन स्कीम की स्पॉन्सरशिप योजना के तहत एक बच्चे को दो हजार रुपये तथा मुख्यमंत्री बाल श्रमिक विद्या योजना के तहत एक बच्चे को एक हजार रुपये मिल सकते हैं। अधिकतम दो बच्चों को लाभ मिल सकता है। ऐसे में इन दोनों योजनाओं का यदि दो बच्चों को लाभ दिलाया जाए तो छह हजार रुपये महीने की सरकार से आर्थिक मदद मिल सकती है। जिससे यह बच्चे आसानी से गुजर बसर कर सकते हैं। इसके लिए कई बार आवेदन भी किया जा चुका है लेकिन इन बच्चों के दरवाजे पर योजनाएं आज तक नहीं पहुंच सकीं।

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