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जानें आगरा में पहली बार कब सजी थी भीमनगरी, डॉ. आंबेडकर की पत्नी ने किया था उद्घाटन

by admin
Know when Bhimnagari was decorated for the first time in Agra, was inaugurated by Dr. Ambedkar's wife

Agra. आगरा में भीम नगरी के आयोजन को 26 वर्ष पूरे हो चुके हैं। 27वीं भीम नगरी सेवला स्थित नगला पद्मा में सज रही है। डॉ भीमराव आंबेडकर जयंती और भीमनगरी आयोजन को लेकर दलित समाज में हर्ष की लहर है। 14 अप्रैल को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती को सभी लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं तो वहीं उनके अनुयायियों के लिए यह किसी पर्व से कम नहीं है। भीम नगरी के शुरुआत होने का इतिहास भी बड़ा ही रोचक है। किस तरह से भीम नगरी की शुरुआत हुई आपको बताएंगे इस खास रिपोर्ट में…

भीम नगरी समारोह केंद्रीय समिति के संस्थापक सदस्य करतार सिंह भारती बताते हैं कि सन 1996 की बात है। समाज के उत्थान को लेकर चक्की पाठ क्षेत्र में समाज के प्रबुद्ध जनों के साथ चर्चा चल रही थी कि किस तरह से समाज का उत्थान हो, समाज शिक्षित बने और बाबा साहब के बताए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित हो। इसी दौरान अचानक से मस्तिष्क में ख्याल आया कि क्यों न जनकपुरी, रामलीला जैसे भव्य आयोजनों की तरह ही बाबा साहब के नाम से भीम नगरी सजाई जाए। मस्तिष्क में आए इस विचार को मौजूद 5 लोगों के बीच में रखा। सभी को प्रस्ताव अच्छा लगा और इसी धरातल पर उतारने की मंजूरी दे दी।

21 लोगों की बनी कमेटी

करतार सिंह भारती जो भीम नगरी आयोजन के आजीवन सदस्य और संस्थापक सदस्यों में से एक है, उन्होंने बताया कि इस विचार पर सभी की सहमति बनी लेकिन इस आयोजन के माध्यम से समाज को एकजुट करने, शिक्षित बनाने और दलित क्षेत्रों के विकास से जोड़ने पर विचार विमर्श हुआ। इस पर सभी ने सहमति जताई और कहा कि यह आयोजन आगे चलकर उत्तर भारत का भव्य आयोजन बनेगा। इसके बाद सभी ने इस स्वप्न को साकार बनाने के लिए कवायद करना शुरू कर दिया। इसके लिए 21 लोगों की कमेटी तैयार की गई जिसमें भीम नगरी आयोजन केंद्रीय समिति के आजीवन और संस्थापक सदस्य भी शामिल थे। कमेटी ने क्षेत्र का चुनाव करना शुरू किया और फिर ईदगाह सर्वोत्तम क्षेत्र मिला, जहां भीम नगरी सजाने पर सभी ने सहमति जताई।

1996 में सजी थी पहली भीम नगरी

भीम नगरी आयोजन केंद्रीय समिति के संस्थापक सदस्य करतार सिंह भारती ने बताया कि सबसे पहली भीम नगरी ईदगाह में सजी थी। सन 1996 में इसकी शुरुआत हुई थी जो सफर अब लगातार चल रहा है। आज भीम नगरी को 26 वर्ष पूरे हो गए हैं। सन 1996 में जब ईदगाह में पहली भीम नगरी सजी थी तो डॉ भीमराव आंबेडकर की धर्मपत्नी उस भीम नगरी का उद्घाटन करने आई थी।

करतार सिंह भारतीय बताते हैं कि जब 1996 में पहली बार आगरा की ईदगाह मैदान पर भीम नगरी सजी थी, उस दौरान उद्घाटन कर्ता के रूप में बाबा साहब की धर्मपत्नी सविता अंबेडकर आई थी। बाबा साहब के नाम से इस भव्य आयोजन जिसे शिक्षा समाज में जागरूकता क्षेत्रों के विकास व अन्य चीजों से जोड़ा गया था उसे देखकर वह उत्साहित दिखाई दी थी। उन्होंने कहा था कि बाबा साहब के बताए मार्ग पर चलकर आप उनके कार्य को और आगे बढ़ा रहे हैं इसके लिए समिति के सभी सदस्य को धन्यवाद है।

जुड़ता चला गया कारवां

करतार सिंह भारतीय बताते हैं कि जब भीम नगरी की शुरुआत की गई थी तो उस समय 1 दिन का ही आयोजन हुआ करता था। इस आयोजन से ज्यादा लोग भी नहीं जुड़े थे लेकिन जैसे-जैसे भीम नगरी आयोजन हर वर्ष होता चला गया तो इसकी तस्वीर भी बदलती चली गई। कुछ लोगों के साथ मिलकर शुरू हुआ यह कारवां आज एक पर्व और त्योहार के रूप में परिवर्तित हो गया है। अब यह आयोजन 3 दिनों का होता है। इन दिनों में अलग-अलग कार्यक्रम होते हैं। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य समाज को एकजुट करना शिक्षित बनाना बाबा साहब के बताए मार्ग और आदर्शों से रूबरू कराना जिससे समाज के लोग अपनी जिंदगी को और बेहतर बना सकें।

इन क्षेत्रों में पहले सज चुकी है भीम नगरी

सन 1996 में भीम नगरी ईदगाह मैदान पर सजी थी। उसके बाद गोपालपुरा, आनंदनगर चक्की पाठ, टेढ़ी बगिया, नारायच, देवरी रोड रामनगर की पुलिया, राजनगर, धनौली, दोरेठा, टेढ़ी बगिया, चक्की पाठ, रामलीला मैदान और अब नगला पदमा में भीम नगरी का आयोजन हो रहा है।

मायावती भी कर चुकी हैं भीम नगरी में शिरकत

आगरा की भीम नगरी समारोह में बसपा सुप्रीमो भी कई बार शिरकत कर चुकी हैं। एक बार तो मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी वह भीम नगरी समारोह में शामिल हुई थी इस भव्य आयोजन के लिए बसपा सुप्रीमो समिति की सराहना कर चुकी हैं।

किसी एक दल की नहीं है भीम नगरी

भीम नगरी समारोह केंद्रीय समिति के संस्थापक सदस्य करतार सिंह भारती का कहना है कि जब से भीम नगरी का आयोजन शुरू हुआ है उस दिन से लेकर आज तक भीम नगरी एक सामाजिक मंच रहा है। यह किसी राजनीतिक दल का कार्यक्रम नहीं है। इस आयोजन का उद्देश्य समाज में समरसता लाना, भाईचारा बढ़ाना और राजनीतिक द्वेष भावना को भूल कर एक दूसरे को गले लगाना है। क्योंकि बाबा साहब संविधान शिल्पी थे और उन्होंने भी सभी को समानता का हक मिले, इसीलिए तत्कालीन समय के अनुसार सभी को समानता हेतु अधिकार दिए गए। इसीलिए यह मंच आज तक सामाजिक रहा है।

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