आगरा। जीवन भर महात्मा गांधी के अहिंसावादी सिद्धान्त के अनुयायी रहे एवं आचार्य बिनोवा भावे के सर्वोदय के पथ को पूरे जीवन अपनाते हुए सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी चिम्मनलाल जैन का शनिवार सुबह निधन हो गया। सुबह करीब पांच बजे उन्होंने अंतिम सांस ली और चिरनिद्रा में लीन हो गए। चिम्मनलाल जैन उन स्वंतंत्रता सेनानियों में सेे थे जिन्हाेंने स्वतंत्रता आंदोलन के साथ साथ इमरजेंसी लागू किये जाने के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी थी। चिम्मन लाल जैन ने 101 वर्ष की उम्र में अपना शरीर त्यागा।
अपने जीवन के सौ से अधिक बसंत देख चुके स्वतंत्रता सैनानी चिम्मनलाल जैन ने आगरा में शराब बंदी के लिए लंबा आंदोलन भी लड़ा। जिले में शराब बंदी को लेकर कई बार उन्होंने आत्मदाह की चेतावनी दी। उनकी चेतावनी से भयभीत होकर प्रशासन ने कई बार उन्हें नजरबंद तक कर दिया। दीवानी चौराहा पर भारत माता की क्षतिग्रस्त प्रतिमा को बदलने के लिए भी उन्होंने अनशन किया था।
स्वतंत्रता सेनानी चिम्मन लाल के निधन से परिवार के लोगों को गहरा आघात लगा है तो वहीं शहर वासियों में भी शोक की लहर दौड़ गई है, क्योंकि चिम्मन लाल आगरा शहर के उन चुनिंदा स्वतंत्रता सेनानियों में शुमार थे जिन्होंने देश को स्वतंत्र बनाने के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी और आजादी के बाद भी देश में व्याप्त सामाजिक बुराइयों के खिलाफ भी एक बड़ा आंदोलन जीवन पर्यंत चलाते रहे।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
चिम्मनलाल जैन 1942 से राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ गए थे। सितंबर 1942 तारा सिंह धाकरे के हाथों से हरीपर्वत थाने के सामने अचानक बम विस्फोट हुआ था। इस साजिश में वे भी शामिल थे। उन्होंने सिटी स्टेशन पुलिस, रेलवे स्टेशन में फटने वाले बमों की आपूर्ति, किरावली फतेहपुर सीकरी के बीच और अछनेरा के बीच टेलीफोन के तार काटे थे। नौ नवंबर 1942 को आगरा कॉलेज के प्रधानाचार्य की मेज के पास हुए बम विस्फोट, 26 जनवरी 1943 को पुरानी कोतवाली सिटी पोस्ट ऑफिस के फर्नीचर को उड़ाने वाले पार्सल द्वारा बम विस्फोट आदि घटनाओं में उनकी मुख्य भूमिका रही। इसके अलावा शहर कांग्रेस कमेटी द्वारा निर्धारित प्रत्येक माह की 9 तारीख को शहर में सत्याग्रह का आयोजन करते थे। वे जुलूस का नेतृत्व भी करते थे।
लगा था मीसा
चिम्मनलाल जैन आजादी के संघर्ष स्वाधीनता सेनानी थे। 1942 में हुई अगस्त क्रांति में पौने तीन साल जेल में रहे। आपातकाल में नौ माह मीसा में बंद रहे। आचार्य बिनोवा भावे अनुयायी थे। उनके साथ 13 साल तक पूरे देश में पदयात्राएं कीं। कई वर्ष तक शहर में शराबबंदी आंदोलन चलाया। उनके प्रयास के कारण कई लोगों ने शराब पीना भी छोड़ा।
लोकस्वर संस्था के राजीव गुप्ता ने उनके निधन पर दुख जताते हुए कहा है कि हमने एक योद्धा को खोया है। 22 जनवरी को वे 101 वर्ष के हुए थे। 11 बजे उनके आवास पर जिला प्रशासन द्वारा उन्हें सलामी दी जाएगी। इसके बाद उन्हें अंतिम यात्रा के लिए ले जाया जाएगा। 1919 में उनका जन्म कीठम में हुआ था। वर्तमान में वे पथवारी बेलनगंज में रहते थे।
शराबबंदी का सपना रहा अधूरा
चिम्मन लाल जैन के परिवारी जनों का कहना है कि शराब को लेकर उनका एक बड़ा आंदोलन आगरा शहर में चला। शराब के कारण सामाजिक बुराइयां पनपती थी, शराबी शराब के लिए अपने बीवी बच्चों को भी मारते पीटते थे जिसे देख वह काफी दुखी होते थे और कहा करते थे कि उन्होंने भी कभी ऐसा नहीं सोचा था कि आजादी के बाद देश इस तरह की सामाजिक बुराइयों से ग्रस्त हो जाएगा। अपने वृद्धावस्था के दौरान भी उन्होंने शराब बंदी के खिलाफ अपने आंदोलन को जारी रखा लेकिन सरकार शराब बंदी को लेकर कोई बड़ा फैसला नहीं कर पाई जिससे उनकी यह अंतिम इच्छा अधूरी रह गई।