आगरा। ‘गारमेन्ट उद्योग सनराइज इण्डस्ट्री है जिसका भविष्य उज्जवल है। आगरा गारमेन्ट हब बनने के लिये उपयुक्त स्थान है यदि शासन द्वारा सस्ते मूल्य पर भूमि व अन्य सुविधायें दे दी जाती हैं’ यह मत था आज की महत्वपूर्ण वेबिनार का। जिसमें 70 से अधिक गारमेन्ट एक्सपर्टस व स्थानीय उद्यमी गारमेन्ट हब के रोडमेप को बनाने के लिये विचारमंथन हेतु इकट्ठे हुये थे। यह वेबिनार नेशनल चैम्बर आॅफ काॅमर्स, आगरा डवलपमेन्ट फाउन्डेशन (एडीएफ) एवं आगरा विजन 2025 द्वारा आयोजित की गयी थी।
50 साल से अधिक गारमेन्ट इण्डस्ट्री के अनुभवी एक्सपर्ट मुम्बई के अरविन्द गुप्ता द्वारा बताया गया कि वर्तमान में देश में लगभग एक लाख गारमेन्ट बनाने वाली इकाईयां हैं जिसमें आॅरगेनाइज सैक्टर में केवल 15-20 प्रतिशत ही हैं और शेष छोटी इकाईयां हैं। गारमेन्ट हब के लिये साफ सुथरे टाइटल वाली भूमि रोड इन्फ्रास्ट्रक्चर, गुणवत्ता पूर्ण पानी, बिजली, केपिटल इंसेटिव, ट्रेनिंग सेन्टर, फायर सर्विस, स्वास्थ्य केन्द्र आदि की आवश्यकता होगी। 12 घंटे की शिफ्ट में वर्कर को कार्य करने की अनुमति होनी चाहिये।
अहमदाबाद के गारमेन्ट एक्सपर्ट सुकेतु शाह ने कहा कि गारमेन्ट हब के लिये इंसेटिव की जरूरत है। वहां श्रमिकों के रहने के लिये होस्टल होना चाहिये। गारमेन्ट उद्योग में हमारा देश अभी बहुत पीछे है और उसकी प्रगति की बहुत संभावनाऐं हैं। आॅपरेटर्स को ट्रेनिंग एक्सपर्टस के द्वारा दी जा सकती है। श्रमिकों की उत्पादकता उद्योग की सफलता के लिये एक महत्वपूर्ण पहलू है। श्रमिकों को टारगेट देना होगा और टारगेट प्राप्त करने के लिये उनको प्रोत्साहन राशि भी। गारमेन्ट इण्डस्ट्री में महिला शक्ति का भरपूर उपयोग हो सकता है। दक्षिण भारत में 80-90 प्रतिशत तक महिलायें कार्य करती हैं। बड़े उद्योगों के लिये भी सिलाई का कार्य आगरा में हो सकता है।
चैम्बर अध्यक्ष राजीव अग्रवाल एवं विधिक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष के सी जैन द्वारा बताया गया कि 4-5 दिन की अवधि में 205 जैसी बड़ी संख्या में उद्यमी नये उद्योग की स्थापना के लिये आगे आये हैं। निफ्ट के एसोसिएट प्रोफेसर नौशाद खान द्वारा गारमेन्ट सिलाई की बारीकियों को समझाते हुए बताया गया सस्ती औद्योगिक भूमि इण्डस्ट्री के लिये बहुत जरूरी है। भूमि की कीमतों के कारण ही किस प्रकार गारमेन्ट इण्डस्ट्री दिल्ली से नोएडा से मानेसर और मानसेर से दिल्ली जयपुर रोड पर पहुंच गयी है। सस्ती भूमि के बिना उद्योग नहीं पनप सकता है। स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करना जरूरी होगा।
न्यायमूर्ति राजीव लोचन मेहरोत्रा सेवानिवृत्त इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गारमेन्ट हब के माध्यम से रोजगार बढ़ाने के लिये एकजुटता की बात रखी। उद्यमी साबिया खान के प्रश्न पर कि गारमेन्ट उद्योग के लिये श्रमिक आगरा में क्यों नहीं उपलब्ध हैं तो उसका उत्तर यह निकल कर आया कि यहां पर कम उद्योग हैं। गारमेन्ट इण्डस्ट्री में 25 साल का अनुभव रखने वाले अनिल शर्मा ने कहा कि हमें स्वाॅट अध्ययन कराना चाहिये ताकि हम अपनी योजना उसी के अनुसार बना सकें। महिलाओं में सीखने की क्षमता अधिक होती है और हम उन्हें जल्दी प्रशिक्षित करके रोजगार दे सकते हैं। बांग्लादेश में उपलब्ध सुविधाओं का भी उन्होंने विस्तार से वर्णन किया।
एडीएफ के अध्यक्ष पूरन डाबर द्वारा पहल का समर्थन किया गया और गारमेन्ट हब की अवधारणां टिप्पणीं बनाकर शासन से स्वीकृति कराने की बात कही। सीए प्रमोद चैहान द्वारा दक्षिणी बाईपास के निकट भी गारमेन्ट हब के लिये भूमि की सम्भावनाओं को तलाशने की बात कही गयी। रोजगार भारती के माध्यम से प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं पर विचार मंथन करने हेतु कहा गया। डिफेंस काॅरीडोर में फोर्सेस के लिये ए0डी0 आर0डी0 के माध्यम से गारमेन्ट बनाने की बात रखी गयी।
शारदा यूनिवर्सिटी के वाई के गुप्ता द्वारा लुधियाना और त्रिपुर की सफलता के कारण जानने चाहे, जिस लार विशेषज्ञों ने बताया कि किस प्रकार समय के साथ वह बड़े हब बन गये। रेडीमेड गारमेन्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष आर के नय्यर द्वारा उत्तर प्रदेश शासन के माध्यम से दी जाने वाली सुविधाओं का हवाला दिया गया। गारमेन्ट एसोसिएशन के संजीव अग्रवाल द्वारा भी स्थानीय उद्यमियों को आगे बढ़ाने की बात रखी गयी। पूर्व अध्यक्ष राजीव तिवारी द्वारा भी इस पहल का समर्थन किया गया।
टीटीजैड के सदस्य पर्यावरणविद् इंजी. उमेश शर्मा द्वारा कहा गया कि गारमेन्ट मैन्युफेक्चरिंग उद्योग में कोई पर्यावरणीय रूकावट नहीं है और वह व्हाईट कैटेगरी में है। रजत अस्थाना व शिशिर अस्थाना (स्टोनमेन) द्वारा भी उद्योग हब बनाये जाने के लिये दक्षिणी बाईपास के नजदीक की भूमि की बात कही गयी और काॅमन एफ्लूएन्ट प्लान्ट लगाने की बात कही गयी।