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एक जिला एक उत्पाद और जीआई टैग के लिए कवायद, जरदोज़ी को फिर से दिलाई जा रही पहचान

by pawan sharma

आगरा। जिस तरह ताजमहल से आगरा की पहचान जुड़ी है, उसी तरह सोने के तार की कढ़ाई यानि जरदोज़ी भी इस शहर की आत्मा में रची-बसी है। यह कारीगरी केवल सुई-धागे का काम नहीं, बल्कि वैदिक विरासत है, जिसने कृष्ण काल से लेकर आधुनिक युग तक आगरा की शान बढ़ाई है। इसी पारंपरिक गौरव को पुनः जागृत करने हेतु आगरा जरदोज़ी डेवलपमेंट फाउंडेशन द्वारा “जरदोज़ी हमारी धरोहर, हमारी पहचान” शीर्षक से दो सत्रीय भव्य आयोजन संजय प्लेस स्थित होटल फेयरफील्ड बाय मैरियट में किया गया। आयोजन में प्रदर्शनी, कॉन्क्लेव और कौशल विकास कार्यशाला के माध्यम से न केवल जरदोज़ी की सुंदरता और बारीकी को प्रदर्शित किया गया, बल्कि इस कला को भविष्य के लिए संरक्षित करने तथा कारीगरों को सम्मान और अवसर दिलाने पर भी गंभीर मंथन किया गया।

प्रथम सत्र में कॉन्क्लेव एवं प्रदर्शनी का उद्घाटन उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम के अध्यक्ष राकेश गर्ग(दर्जा राज्यमंत्री), चर्म एवं जूता उद्योग परिषद के अध्यक्ष पूरन डावर, संयुक्त आयुक्त उद्योग अनुज कुमार, लघु उद्योग भारती के प्रदेश सचिव मनीष अग्रवाल और संस्था संरक्षक डॉ. रंजना बंसल द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ किया गया।
कॉन्क्लेव की प्रस्तावना रखते हुए हुए डॉ. रंजना बंसल ने कहा कि जरदोज़ी केवल कढ़ाई नहीं, यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का चमकता हुआ धागा है। यह वही कला है जिसने कभी शाही पोशाकों को रौशन किया और आज भी भगवान श्रीकृष्ण के श्रृंगार में अपना योगदान देती है। दुख की बात है कि वैदिक काल की ये गौरवशाली परंपरा आज अपने ही घर में पहचान की मोहताज बन गई है। जब तक हम अपने शहर की कला को अपना गर्व नहीं मानेंगे, तब तक इसे वह मंच नहीं मिलेगा जिसकी वह हकदार है। जरदोज़ी को ‘एक जनपद-एक उत्पाद’ योजना में स्थान दिलाना समय की मांग है। जीआई टैग से इसके वैभव की पुनर्स्थापना हम कर सकेंगे। यह न केवल कारीगरों को सशक्त करेगा, बल्कि आगरा को एक नई पहचान देगा। उन्होंने सरकार से मांग रखी की आगरा की इस विरासत कला को उचित पहचान मिले और इसके कलाकारों को उचित सम्मान प्रदान किया जाए। उन्होंने कहा कि जरदोज़ी के सुनहरे धागों में अब एक नए युग की चमक बुनने का संकल्प है, एक ऐसा युग, जिसमें आगरा की यह पारंपरिक कला फिर से अपने शिखर पर पहुंचे। पच्चीकारी, लेदर और पेठा आगरा की पहचान हैं तो जरदोजी आगरा का सम्मान है। जरदोजी सही मायने में कृष्ण कला है। ये शाही कल, भव्य आज है और सम्मान मिलने पर स्वर्णिम कल बन जाएगा।

लघु उद्योग निगम अध्यक्ष राकेश गर्ग ने अपने संबोधन में कहा कि जरदोज़ी जैसे पारंपरिक उद्योगों को आज नवाचार और बाज़ार से जोड़ने की आवश्यकता है। लघु उद्योग निगम का प्रयास है कि ऐसी कलाओं को प्रोत्साहन मिले जो रोजगार के साथ-साथ सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवित रखें। हम चाहेंगे कि आगरा की जरदोज़ी न केवल राष्ट्रीय मंच पर बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनी विशिष्ट छाप छोड़े। उन्होंने इस कला को अब से कृष्ण कला संबोधित किए जाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि आगरा के सभी होटल्स में जरदोजी कला का नमूना विवरण के साथ रखें।
फुटवियर एवं चमड़ा उद्योग विकास परिषद अध्यक्ष पूरन डावर ने भी जरदोज़ी को फैशन, पर्यटन और निर्यात उद्योग से जोड़ने की संभावनाओं पर विचार रखते हुए कहा कि आगरा को जरदोज़ी के माध्यम से विश्व के नक्शे पर नई पहचान दिलाई जा सकती है।
लघु उद्योग भारती के प्रदेश सचिव मनीष अग्रवाल ने कहा कि पुरातन सभ्यता के साथ विकास की सोच जरदोजी कला को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दे सकती है। रजत अस्थाना ने जरदोजी कला को कारीगर और एक्सपोर्ट हाउस के सीमित दायरे से निकाल कर स्थानीय बाजार में प्रचारित करने की बात रखी।

जीआई टैग मिलने की राह होगी आसान
संयुक्त आयुक्त उद्योग अनुज कुमार ने कहा कि प्रशासन की ओर से हरसंभव सहयोग दिया जाएगा ताकि यह परंपरा नई पीढ़ी तक पहुंचे और कारीगरों को उचित प्रशिक्षण, मंच और सम्मान मिले। उन्होंने कहा कि आगरा में सिर्फ एक ही उत्पाद एक जिला एक उत्पाद के अंतर्गत नहीं आता है। चांदी और ब्रश के बाद अब जरदोजी को भी बहुत जल्दी प्रस्ताव के रूप में आगे हम रखेंगे। इसके अलावा आगामी समय में जीआई टैग में पेठे की घोषणा जल्द होने वाली है। इसके बाद जरदोजी का नाम प्रस्तावित किया जाएगा। संभवतः डेढ़ से दो वर्ष में सफलता मिल सकती है।

इन्होंने रखे विचार
कॉन्क्लेव में फैजान, रुचिरा माथुर, अग्रज जैन और अलर्क लाल ने जरदोजी कला उद्योग की भविष्य की संभावनाओं पर विचार रखे।

कौशल विकास कार्यशाला में चमकी सोने के तारों की कारीगरी
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में जरदोज़ी कौशल विकास कार्यशाला का आयोजन हुआ, जो इस पारंपरिक कला को नई पीढ़ी तक पहुंचाने और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। कार्यशाला का शुभारंभ महापौर हेमलता दिवाकर, एडीए उपाध्यक्ष एम. अरून्मोली और पूनम सचदेवा द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया।

कार्यशाला में 40 से अधिक महिलाओं ने भाग लिया, जिन्हें जरदोज़ी कढ़ाई के मूलभूत तकनीकी ज्ञान से लेकर पारंपरिक डिज़ाइन पैटर्न बनाने तक का प्रशिक्षण प्रदान किया गया। प्रशिक्षण में यह बताया गया कि किस प्रकार जरदोज़ी की कढ़ाई को विभिन्न प्रकार के वस्त्रों, परिधानों, परदों, थालपोश और सजावटी वस्तुओं पर प्रयोग कर व्यावसायिक रूप से भी अपनाया जा सकता है।

प्रशिक्षकों ने प्रतिभागियों को धागा, तांबे-सोने की तार, मोती, कांच की बूँदें, कढ़ाई की सूई आदि पारंपरिक औज़ारों का प्रयोग कर वास्तविक अभ्यास कराया। प्रतिभागियों ने अपने हाथों से जरदोज़ी के नमूने तैयार किए, जिन्हें देखकर उपस्थित अतिथिगण ने भी उनकी सराहना की। कार्यशाला का उद्देश्य केवल शिल्प सिखाना नहीं था, बल्कि महिलाओं में आत्मनिर्भरता और उद्यमिता का बीज बोना था। सत्र में शी विल संस्था और ऑल वुमेन एंटरप्रेन्योर संस्था की सदस्याओं ने भी भागीदारी निभाई। कार्यक्रम का संचालन श्रुति सिन्हा ने किया। व्यवस्थाएं मीनाक्षी किशोर, राशि गर्ग, आयुषी चौबे ने संभाली।

सीएम के समक्ष रखेंगी कौशल विकास योजना में शामिल करने का प्रस्ताव – मेयर
कार्यक्रम में मेयर हेमलता दिवाकर ने घोषणा की कि कृष्ण कला जरदोजी के वैदिक इतिहास और महत्व को प्रचारित करने की आवश्यकता है। वे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भेंट कर लिखित रूप में कृष्ण कला को कौशल विकास योजना में शामिल करने का प्रस्ताव रखेंगी, ताकि इसके अस्तित्व को उचित सम्मान मिल सके।

प्रदर्शनी में दिखी बेमिसाल कारीगरी
कार्यक्रम में लगी प्रदर्शनी में लगाई गई 8 स्टॉल्स पर बेमिसाल हुनर देखने को मिला। राखी कौशिक की स्टाल पर साड़ी सूट काफ्तान जैसी पोशाकें जरदोजी से सजी हुई थी, तो अग्रज जैन की स्टाल पर हेडफोन से लेकर ऐतिहासिक चित्रकार रवि वर्मा की चित्रकारी पर जरदोसी उकेरी हुई थी। कोमिला धर द्वारा बनाया गया जरदोजी पर आधारित केक लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा।

ये रहे उपस्थित
कार्यक्रम में हरविजय वाहिया, डॉ सुशील गुप्ता, सीएस अनुज अशोक, केसी जैन, डॉ डीवी शर्मा, राजेश गोयल, आनंद राय, वत्सला प्रभाकर, अनिल शर्मा, अशोक चौबे, संजीव चौबे, सुनीता गुप्ता, डॉ मुकेश गोयल राजेंद्र सचदेवा, संजय गोयल, रेनू लांबा आदि उपस्थित रहे।

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