आगरा। यमुना पार स्थित अस्पताल के डाॅक्टर द्वारा शंभुनगर की प्रसूता द्वारा प्रसव की कीमत न चुकाने पर उसके बच्चे को बेचे जाने के मामले में चाइल्ड राइट् एक्टिविस्ट एवं महफूज संस्था के समन्वयक नरेश पारस ने डीएम, बाल आयोग, सीएमओ, एसएसपी और मानव तस्करी रोकथाम शाखा को पत्र भेजकर जांचकर कार्यवाही की मांग की है।
उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि बच्चे निवासी शिवचरन की पत्नी गर्भवती थी। वह उसका प्रसव कराने ट्रांस यमुना स्थित जेपी अस्पताल ले गया। जहां उसकी पत्नी बबिता ने एक पुत्र को जन्म दिया। डाक्टरों ने प्रसव का खर्च 30 हजार रूपये बताया। शिवचरन रिक्शा चलाकर अपने पविार का पालन पोषण करता है। उसका मकान कर्ज में डूब गया जिसके चलते वह किराए पर रह रहा है। उसके पास डाक्टर को देने के लिए 30 हजार रूपये नहीं थे। उसने कुछ लोगों से कर्ज भी मांगा लेकिन किसी ने उसे कर्ज नहीं दिया। अंत में उसने डाॅक्टर से अनुरोध किया कि उसके पास पैसे नहीं हैं। वह थोड़े-थोड़े करके चुका देगा लेकिन डाॅक्टर ने कहा कि पैसे नहीं है तो बच्चा भी नहीं मिलेगा। डाॅक्टर ने कहा हम तुम्हें एक लाख रूपये दे रहे हैं। बच्चे को हम अपने रिश्तेदार को दे देंगे। तुम बच्चे को वैसे भी नहीं पाल पाओगे। डाॅक्टर ने एक लाख में से तीस हजार रूपये काटकर उसे 70 हजार रूपये दे दिए। पांच हजार रूपये दवा के पैसे दे दिए। दोनों पति-पत्नी अपने घर आ गए। वह अपना बच्चा चाहते हैं लेकिन अस्पताल द्वारा बच्चा नहीं दिया गया।
गर्भधारण के बाद से ही आंगनबाड़ी कार्यकत्री द्वारा गर्भवती के स्वास्थ्य की निगरानी की जाती है। उसे पोषक आहार दिया जाता है। एएनएम द्वारा गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण कराया जाता है। अंत में आशा कार्यकत्री द्वारा 108 एंबुलेंसे से सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाकर प्रसव कराया जाता है। प्रसव उपरांत प्रसूता को प्रोत्साहन राशि दी जाती है लेकिन यहां ये सरकारी सुविधाएं नहीं मिली। उपरोक्त की लापरवाही रही। परिवार के पास आयुष्मान कार्ड भी नहीं है।
देश भर में किसी भी बच्चे को गोद देने के लिए केन्द्रीय दत्तक ग्रहण अथारिटी (कारा) ही अधिकृत है। इसके अलावा कोई गोद नहीं दे सकता है। प्रसव की कीमत चुकाने के लिए बच्चे को किसी दूसरे को बेचना अथवा गोद देना अपराध की श्रेणी में आता है। हो सकता है यह अस्पताल अन्य बच्चों की भी इसी तरह खरीद फरोख्त करता हो। यह मानव तस्करी के दायरे में आता है। निष्पक्ष जांच कराई जाए। प्रसूता को उसका बच्चा वापस कराया जाए। बच्चे की खरीद फरोख्त संबंधी आईपीसी की धारा 370 के तहत मुकदमा दर्ज कराया जाए। साथ ऐसे अन्य अस्तपतालों को भी चिन्हित कर कार्यवाही की जाए जो बच्चों की खरीद फरोख्त करते हैं, कई और अस्पताल भी संलिप्त हो सकते हैं।