आगरा। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को रोकने के लिए पूरे देश को लॉकडाउन कर दिया गया। ऐसे में बड़ी समस्या उन मजदूरों के साथ में आ गई जो मजदूर अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए और परिवार का पेट पालने के लिए एक प्रांत से दूसरे प्रांत मजदूरी करने गया था। इस मजदूर के पास जितने पैसे थे वह सब खर्च हो गए। दूसरे प्रांत में फंसे मजदूर को रोजी-रोटी का संकट आया तो मजदूर पैदल ही अपनी मंजिल के लिए निकल पड़ा। हालांकि जिला प्रशासन के कंधे पर जिम्मेदारी दी गई थी कि सभी मजदूरों को सरकारी वाहन रोडवेज बसों के द्वारा उनके मंजिल तक पहुंचाया जाए। मगर शायद आगरा में सड़क किनारे पैदल पैदल चलते यह मजदूर जिला प्रशासन के दावे को अंगूठा दिखा रहे हैं।
बेबस लाचार इस मजदूर को कोई सहायता नहीं मिल रही है। सिर पर बोझा, गोद में मासूम बच्चे तो भूख और प्यास से व्याकुल यह मजदूर अपने मंजिल जाना चाहता है। मजदूर का दर्द जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े कर रहा है। आगरा से मजदूर के परिवारों के कई जत्थे पंजाब से जिला जालौन उत्तर प्रदेश के लिए निकला है। पिछले 4 दिन भूख और प्यास से व्याकुल सड़क किनारे मासूम बच्चों को लेकर अपनी मंजिल जा रहा है। मजदूर की तो खैर मजबूरी है। मगर जिला प्रशासन के दावे आखिरकार क्यों फेल हो रहे हैं जबकि शासन ने साफ तौर पर कह दिया कि हर मजदूर को सरकारी वाहन द्वारा उनके घर पहुंचाया जाए। इन मजदूरों को भोजन उपलब्ध कराया जाए, मासूम बच्चों को दूध उपलब्ध कराया जाए। मगर शायद अभी तक इन्हें कोई भी सरकारी सुविधा नहीं मिली है।
जिला औरैया में सड़क हादसे के शिकार हुए 24 मजदूर काल के गाल में समा गए हैं, जिसको लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कड़े दिशा-निर्देश जारी करने के साथ-साथ मृतक और घायल मजदूर के परिजनों को आर्थिक मुआवजा भी दिया है। मगर आगरा से सड़क किनारे पैदल पैदल चल रहा मजदूरों का जत्था यह सोच सोचकर दुखी है कि आखिर वह अपने घर अपने परिवार इन मासूम बच्चों के साथ कब तक सुरक्षित पहुंच पाएगा।
पैरों में छाले पड़ गए, मासूम बच्चे किसी को दूध नहीं मिला तो तड़पने लगा तो कोई मजदूर भूख और प्यास से व्याकुल है। मगर उम्मीद यही कि किसी भी तरह वह अपने घर सुरक्षित पहुंच जाए जिससे यह संकट जल्द से जल्द दूर हो।
आगरा मथुरा राष्ट्रीय राजमार्ग आगरा नोएडा एक्सप्रेस वे आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे आगरा दक्षिण या बाईपास हो जहां देखो वहां मजदूर सैकड़ों की संख्या में पैदल-पैदल एक प्रांत से दूसरे प्रांत जा रहा है। प्रांत में बस को पहुंचने में लगभग 3-4 दिन का समय लगता है। ऐसे में यह मजदूर कितनी रात और कितने दिन काटकर आगरा पहुंचा है मजदूरों की कई तस्वीरें इनका दर्द बयां कर रही हैं। आंखों से आंसू छलक रहे हैं, पैरों में छाले लिए यह मजदूर जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा रहा है।