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4 अनाथों को 6 साल से सरकारी मदद का इंतजार, 2016 में राज्य बाल आयोग सदस्य ने दिया था आश्वासन

by admin
4 orphans waiting for government help for 6 years, State Children Commission member gave assurance in 2016

आगरा। एक जूता फैक्ट्री में अस्थायी कर्मचारी के रूप में काम कर रहे सोनू की छोटी बहन 10 वर्षीय बिस्मिल्लाह अपनी दो बड़ी बहनों के साथ खाली पेट सोने चली गयी। गुरुवार की रात फिर कोई खाना लेकर नहीं आया। महामारी आने से पहले बिसमिलाह के बड़े भाई सोनू के पास नौकरी थी, लेकिन लॉकडाउन ने उनकी नौकरी छीन ली। उनके माता-पिता 6 साल पहले मर चुके हैं। यह अभागे बच्चे पिछले छह वर्षों से सरकारी मदद का इंतजार कर रहे हैं।

थाना लोहामंडी के राजनगर क्षेत्र में रेलवे लाइन के पास झोपड़ी में रहने वाले चारों बच्चे सोनू और उसकी तीन बहने बिस्मिलाह रूबी और फातिमा के पास बिजली का कनेक्शन नहीं है। एक चारपाई है जिस पर तीन बहनें सोती हैं। बड़ा भाई सोनू जमीन पर सोता है। झोपड़ी को कपड़े, तिरपाल के टुकड़ों और फेंके गए बैनरों से ढक दिया गया है। बारिश होने पर बच्चों के पास छिपने के लिए कोई जगह नहीं होती। बड़े भाई ने कोशिश की, लेकिन राशन कार्ड नहीं बन पाया। बच्चे अब अपने पड़ोसियों और एक बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस द्वारा दिए गए भोजन पर जीवित हैं।

दरअसल मार्च 2016 में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की तत्कालीन सदस्य ज्योति सिंह ने इन बच्चों से मुलाकात की थी और अधिकारियों को मदद करने का निर्देश दिया था लेकिन दुर्भाग्य रहा कि इसके बाद से अधिकारियों की ओर से कोई कार्यवाही नहीं की गई।

पड़ोसियों के अनुसार, बच्चों के पिता की 2012 में एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी और उचित इलाज के अभाव में उनकी मां ने 2015 में तपेदिक के कारण दम तोड़ दिया। सोनू ने बताया कि वह अपनी मां के मरने के बाद से काम कर रहा है। पहले एक चाय की दुकान पर फिर एक बिरयानी की दुकान पर काम किया और बाद में जूता कारखानों में एक मजदूर के रूप में कार्यरत रहा। कोविड-19 लॉकडाउन के बाद उसके पास कोई काम नहीं है। उसका कहना है कि असहाय महसूस करता है क्योंकि वह अपनी बहनों की देखभाल नहीं कर पा रहा है।

सोनू ने बताया कि कई बार उन्हें रात को खाली पेट सोना पड़ता है। पड़ोसियों से मदद मिलती है लेकिन वे भी गरीब हैं और उनकी सीमाएं हैं। उसने बताया कि पहले उसकी दो छोटी बहनें स्कूल जा रही थीं। उन्हें वहां मिड-डे मील मिलता था। पिछले साल कोविड -19 के प्रकोप के बाद, स्कूल भी बंद हो गए। जो लोग हमारी मदद कर रहे थे उन्होंने भी आना बंद कर दिया। तब से सभी के लिए स्थिति बहुत कठिन रही है। 2016 के बाद से कोई अधिकारी मिलने नहीं आया।

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