- जिले की 20 प्रतिशत आबादी में 23 नवंबर से पांच दिसंबर तक खोजे गए नये टीबी मरीज
- अपने आसपास टीबी के लक्षण वाले मरीज दिखें तो नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर कराएं जांच
आगरा, 04 जनवरी 2024। भारत को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत 23 नवंबर से पांच दिसंबर तक “एक्टिव केस फाइंडिंग अभियान” (सक्रिय क्षय रोगी खोजी अभियान) चलाया गया। अभियान के दौरान 390 नये टीबी मरीज मिले हैं जिनका इलाज शुरू कर दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग ने अपील की है कि अगर किसी के आसपास टीबी के लक्षणों वाले मरीज दिखें तो नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जांच अवश्य कराएं। टीबी संबंधी समस्त जांचे और इलाज सरकारी प्रावधानों के तहत उपलब्ध कराई जा रही हैं।
सीएमओ डॉ. अरुण कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि एक क्षय रोगी का इलाज समय से शुरू न होने से वह साल भर में अपने सम्पर्क में आने वाले दस से पंद्रह लोगों क्षय रोगी बना सकता है। वहीं अगर क्षय रोगी का इलाज शुरू कर दिया जाता है तो तीन सप्ताह दवा खाने के बाद वह किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमित नहीं करता है। दवा का कोर्स पूरा होने पर वह पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है। ऐसे में सभी लोग क्षय रोग के लक्षणों वाले व्यक्तियों को जाँच करने के लिए प्रेरित कर निकटतम सरकारी स्वास्थ्य इकाई, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और हेल्थ एंड वैलनेस सेंटर भेजकर जिले को क्षय रोग मुक्त करने में अपना योगदान दें।
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. सुखेश गुप्ता ने बताया कि एसीएफ कैंपेन के तहत स्वास्थ्य विभाग की ओर से गठित टीम द्वारा जनपद में 10.99 लाख लोगों की घर-घर जाकर स्क्रीनिंग की गयी। इस दौरान 6013 संभावित टीबी मरीजों के बलगम की जांच की गयी जिनमें से 390 लोग टीबी से ग्रसित मिले।
डीटीओ ने बताया कि मरीज में टीबी पुष्टि होने पर उसके परिवार के सदस्यों की भी टीबी की जांच कराई जाती है। परिवार के अन्य सदस्यों में टीबी न निकलने पर भी उनको टीपीटी (टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी) दी जाती है। इससे उन्हें भविष्य में टीबी होने की आशंका नहीं रह जाती। उन्होंने बताया कि टीबी मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, इसलिए इन मरीजों की एचआईवी और मधुमेह की भी जांच कराई जाती है। सभी मरीजों की ड्रग सेंस्टिविटी की भी जांच कराई जाती है। जो मरीज ड्रग सेंस्टिव मिलते हैं उनकी दवा छह महीने तक चलती है, जबकि ड्रग रेसिस्टेंट (डीआर) टीबी मरीजों का इलाज डेढ़ से दो साल तक चलता है। ड्रग सेंस्टिव टीबी के मरीज जब बीच में दवा बंद कर देते हैं तो उनके डीआर टीबी मरीज बनने की आशंका बढ़ जाती है, इसलिए दवा पूरा किये बिना इलाज बंद नहीं होना चाहिए अन्यथा टीबी से जटिलताएं बढ़ सकती हैं।
डीटीओ ने बताया कि टीबी मरीजों को ट्रीटमेंट के दौरान बेहतर पोषण की आवश्यकता होती है। इसलिए प्रत्येक टीबी मरीज को निक्षय पोषण योजना से जोड़कर 500 रुपए प्रतिमाह सीधे उनके बैंक खाते में ट्रांसफर किए जाते हैं। इसके साथ ही निक्षय मित्रों के द्वारा भी टीबी मरीजों को उनकी सहमति पर गोद लिया जाता है और उन्हें पोषण संबंधी सहयोग के साथ साथ मानसिक संबल भी दिया जाता है। इस योजना के तहत कोई भी व्यक्ति, राजनेता, अधिकारी, जनप्रतिनिधि या स्वयंसेवी संस्था टीबी मरीज को गोद लेकर उन्हें हर माह पोषण सामग्री दे सकता है । साथ ही इलाज चलने तक मरीज को मानसिक संबल प्रदान करना है ताकि वह निराश न हो और बीच में दवा न बंद करे।
टीम की मदद से मिली राह
ब्लॉक फतेहपुर सीकरी के नगला डंबर के निवासी 46 वर्षीय कुंवर सिंह (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि उन्हें 15 दिनों से लगातार खांसी आ रही थी। इसके अलावा कोई परेशानी नहीं थी। इसलिए उन्होंने मर्ज की गंभीरता पर ध्यान नहीं दिया। 3 दिसंबर 2023 को को स्वास्थ्य विभाग की टीम उनके घर आई और टीबी के लक्षणों के बारे में बताया। जब उन्होंने खांसी वाली परेशानी के बारे में टीम को बताया तो उनका बलगम जांच के लिए लिया गया। जांच के उपरांत पता चला कि उन्हें टीबी हो गया है। वह बताते हैं कि उन्होंने टीबी यूनिट फतेहपुर सिकरी जाकर डॉक्टर को दिखाया और दवाइयां प्राप्त की। डॉक्टर ने उन्हें नियमित दवा का सेवन करने की सलाह दी है। उन्होंने बताया, ‘‘अभी मैं अपनी नियमित रूप से दवाई का सेवन कर रहा हूं, ताकि मैं जल्द से जल्द स्वस्थ हो सकूं। सीनियर ट्रीटमेंट सुपरवाइजर सीमा द्वारा मुझे बताया गया कि आपको निक्षय पोषण योजना से भी जोड़ा जा चुका है। उपचार के दौरान तक 500 रुपये प्रतिमाह सीधे बैंक खाते में ट्रांसफर किया जाएंगे। मास्क लगाने और पौष्टिक आहार जैसे दूध, अंडा, पनीर, फल आदि का सेवन करने की भी सलाह दी गयी है।”