मंच पर संघ प्रमुख मोहन भागवत का उद्बोधन था। जहां संघ प्रमुख मोहन भागवत राष्ट्र की एकता अखंडता पर बात कर रहे थे और अपने स्वयंसेवकों को समरसता का पाठ पढ़ा रहे थे। तो वहीं मोहन भागवत के बराबर वाले मंच पर बैठे पूरे देश के महामंडलेश्वर और संतों के दिल में कुछ अलग ही चल रहा था। संत व्याकुल था। परेशान था। हैरान था। बात इतनी नहीं थी। संत और महामंडलेश्वर संघ प्रमुख मोहन भागवत के उद्बोधन तो सुन रहा था। मगर संत चाहता था कि अयोध्या में भगवान श्री राम के मंदिर का भव्य निर्माण हो। रामलला जिस झोपड़ी में बैठे हैं। उस झोपड़ी को हटाकर एक भव्य राम मंदिर बनाया जाए। इसी बात को लेकर उद्बोधन के बाद संतों ने ऐलान कर दिया कि राम मंदिर तो बनना ही चाहिए।
संघ प्रमुख मोहन भागवत उद्बोधन के बाद मंच से नीचे उतरे। गाड़ी में सवार हुए। संघ प्रमुख मोहन भागवत की गाड़ी के आगे सुरक्षाकर्मी चल रहे थे। कुछ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने मुलाकात करने की कोशिश की। मगर आला अधिकारियों की आंखों को देख स्वयंसेवक पीछे हट गए। मगर संतों ने गाड़ी में बैठे संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की। हाथ जोड़कर अभिनंदन किया और आंखों ही आंखों में संतों ने अपनी बात मोहन भागवत तक पहुंचा दी। मीडिया से बात करते हुए संतो ने साफ कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश आ जाएगा तो उसके बाद इंतजार नहीं होगा। ना कोई शासन होगा न प्रशासन होगा। न सरकार होगी। संत केवल भगवान श्रीराम के मंदिर को बनाने के लिए एकजुट हो जाएगा।
जितने भी संतों से बात करो तो मुद्दा केवल राम मंदिर का था। त्रेता के अवतारी भगवान श्री राम अयोध्या में त्रिपाल में बैठे हैं। संत कहता है कि उन्हें चैन नहीं है। हालांकि कुछ संत केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार से नाराज भी हैं। संतों का कहना है राम का नाम पर चलने वाली यह सरकार उन्हें कई बार कह चुकी है मगर राम मंदिर नहीं बना तो संतों ने भी साफ कह दिया है कि। अब राज्य सरकार और केंद्र सरकार को जागना होगा और राम मंदिर बनाना ही होगा।
मीडिया के जरिए संतों ने अपनी बात संघ प्रमुख मोहन भागवत तक पहुंचा दी है। आगरा की सरजमी से संतों ने अयोध्या में राम मंदिर का ऐलान कर दिया है। जिसको लेकर एक बार फिर सियासत गरमा गई है।