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वृंदावन की राधारानी अब हो जाएगी भारतीय, जानिए पाकिस्तान में हिन्दू परिवार की हक़ीक़त

by admin

मथुरा। नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर भले ही देश में गतिरोध देखा जा रहा है लेकिन उत्तर प्रदेश में इस अधिनियम के लागू हो जाने से कुछ लोगों के चेहरों पर खुशी है। अधिनियम लागू होने की बात करने के दौरान उनकी आंखों से खुशी के आंसू भी झलक उठे। वृंदावन की कुंज गलियों में शरणार्थी के रूप में रहने वाली राधारानी के साथ भी कुछ ऐसा है। 41 साल से वृंदावन की कुंज गलियों में रहने वाली 65 वर्षीय राधा अब प्रदेश सरकार के फैसले के बाद जल्द ही भारतीय होने जा रही है। प्रदेश सरकार प्रदेश में रहने वाले शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है। इसमें वृंदावन में रह रहे चार पाकिस्तानी भी शामिल है।

वृंदावन की कांशीराम कॉलोनी में रहने वाली राधा 1979 में पाकिस्तान छोड़कर भारत आई थीं। इस दौरान उनके साथ दो माह की मासूम बेटी जनता थी। पति रमेश कुमार शर्मा पहले ही भारत आ चुके थे। इन 40 सालों में उनके बच्चें भी शादीशुदा हो गए लेकिन परिवार के लोग आज भी बूढ़ी हो चुकी राधा की नागरिकता को लेकर चिंतित थे। राधा की बड़ी बहन तो बगैर नागरिकता के ही दुनिया से विदा हो गईं। राधा के पति रमेश शर्मा भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करते-करते दुनिया को छोड़ गए, परंतु राधा को भारतीय नागरिकता नहीं मिल सकी।

राधा के बड़े बेटे संजय ने बताया कि भारत सरकार के नागरिकता संशोधन अधिनियम और योगी सरकार के इस फैसले से अब उन्हें नई उम्मीद जगी है कि मां के लिए वीजा बढ़वाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। नए कानून के तहत उनकी मां की नागरिकता का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। श्री बांकेबिहारी की नगरी में रसियन बिल्डिंग के निकट ही तीन सदस्यों का एक और परिवार है जो वर्षो से पाकिस्तानी नागरिकता होने पर वीजा के सहारे वृंदावन में रह रहा है। परिवार में शामिल जया 2004 में भारत आई थीं। उनके साथ दो बेटे आनंद और ऋषिकेश भी थे। इस परिवार के नाते-रिश्तेदार भी इसी स्थिति में हैं।

पाकिस्तान से आये इन परिवारों का कहना है कि पाकिस्तान में हालात बद से बत्तर है। हिंदुओ को वहाँ पाकिस्तानी नही समझा जाता है। 40 साल पहले के दौर को सौचकर वो सहम जाते है। उनका कहना था कि जवान बेटियां घर से निकल नही सकती थी। बिना बुर्के के निकलने पर लड़कियों को उठाकर ले जाया जाता था और फिर उनके साथ दरिंदगी या फिर जबरन निकाह कर लिया जाता था। हिंदू लड़कियों से छेड़छाड़ और उनका अपहरण आम बात थी। मंदिरों में पूजा के लिए नहीं जा सकती थी। इसीलिए घर, जमीन सब कुछ वहां से छोड़कर वो भारत में शरणार्थी बनकर आ गए।

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