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आगरा के गांव में पानी बना रहा ग्रामीणों को विकलांग, समाजसेवी नरेश पारस ने उठाया ये बीड़ा

by pawan sharma

आगरा जिले के अधिकतर गांव डार्क जोन में चले गए है। जिसके कारण शुद्ध पेयजल की किल्लत होने लगी है। कुछ गांव में तो पेयजल तो है लेकिन वो पीने योग्य नही है क्योंकि वहाँ के भूगर्भ जल में फ्लोराइड अधिक है जो व्यक्ति और बच्चों को विकलांग बना रहा है। ऐसा ही कुछ हाल जिले के
बरौली अहीर ब्लॉक के गांव पट्टी पचगाई में बना हुआ है। यहाँ का पानी फ्लोराइड युक्त है जिसे काफी समय से लोग पीने के लिए मजबूर है।

इस समस्या की वास्तविक स्थिति और इस समस्या के समाधान ढूढ़ने के लिए मंगलवार की सुबह समाजसेवी नरेश पारश वरिष्ठ चिकित्सको की टीम के साथ गांव पहुँचे। वहाँ वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर संजय चतुर्वेदी एवं एस एन मेडिकल कॉलेज के सीनियर रेजीडेंट चिकित्सक ने समाजसेवी नरेश पारस के साथ ग्रमीणों से वार्ता की और इस समस्या के बारे में जानकारी ली।

चिकित्सकों ने पाया कि गाँव के पानी मे फ्लोराइड अत्याधिक मात्रा में है। जिसके कारण अधिकतर ग्रामीण विकलांग हो रहे है जिसमे बच्चे भी शामिल हैं। किसी के पैर और हाथ टेढ़े हैं तो कोई चलने में असमर्थ हैं। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि इस पानी को पीने से हाथ पैरों वह कमर में दर्द रहता है व दातों में भी परेशानी रहती है।

यह केवल इस गांव की स्थिति नही बल्कि इस गांव से सटे 11 गांव में यही हाल है जिनमें से तीन गांव की स्थिति गंभीर है। पेयजल की गांव के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था न होने से ग्रामीण इसी पानी को पीने के लिए मजबूर है।

वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ संजय चतुर्वेदी ने गांव की स्थिति को गंभीर बताया और एसएन मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों द्वारा गांव के लोगों का परीक्षण कराने की भी बात कही जिससे इन लोगों में फ्लोराइड पेयजल से पनप रही बीमारियों से छुटकारा मिल सके।

समाजसेवी नरेश पारस और डॉक्टर ने ग्रामीणों को समझाया कि वो फ्लोराइड युक्त पानी से छुटकारा पाने के लिए घरों में आरओ प्लांट लगवाये या फिर इस पानी में फिटकरी डालकर पानी को पिया करे क्योंकि फिटकरी डालने से गंदगी और फ्लोराइड नीचे रह जाती है और शुद्ध पानी ऊपर आ जाता है जो पीने योग्य होता है।

समाजसेवी नरेश पारस ने बताया कि कई वर्षों पहले शासन ने इस समस्या को लेकर स्टडी कराई थी और ज्यादा फ्लोराइड वाले हैंडपम्पों पर लाल निशान लगा दिए थे जिससे लोग इसका उपयोग न करे लेकिन शासन प्रशासन ने इनके पेयजल के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नही की और जो कार्ययोजना बनाई वो 2022 में पूरी होगी। ऐसे में यह ग्रामीण वासी उसी पेयजल का प्रयोग करने लगे और यह समस्या बढने लगी। गांव के बाहर कई किलोमीटर दूर एक आरओ प्लांट है लेकिन ग्रामीण गरीबी व दूर होने के कारण उस पेयजल को ले नही पाते हैं। जिला प्रशासन ने पेयजल के लिए एक टंकी बनवाई है लेकिन उसका कनेक्शन सीधे समर से है जिसके कारण वो पानी भी पीने योग्य नही है।

इस संबंध में समाजसेवी नरेश पारश ने यूपी बाल आयोग और मानव अधिकार आयोग को पत्र के माध्यम से इस गांव की समस्या से अवगत कराया है और इन पीड़ितों को मुआवजा दिलाने की मांग उठाई है। उनका यह भी कहना है कि समाज के साथ मिलकर इस गांव में एक बड़ा आरओ प्लांट लगवाया जाए जिससे यहाँ के लोगों को पेयजल मिले और वरिष्ठ चिकित्सक की टीम यहाँ के क्षेत्र की स्टडी करे।

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