Agra. आज से लगभग 168 वर्ष पहले भारतीय रेलवे की स्थापना इस उद्देश्य को लेकर की गई थी कि भारत में लोग आसानी से एक जगह से दूसरी जगह पहुंच सकें। अंग्रेजों के समय में हुई भारतीय रेलवे की शुरुआत आज आधुनिकता के दौर में इतिहास रच रही है। भारतीय तकनीक पूरे विश्व में लोहा मनवा रही है।
हादसों को रोकने की कवायद में जुटा रेलवे
पिछले दस वर्षों पर नजर डालें तो देश को केंद्र सरकार ने विश्व स्तरीय ट्रेनों का तोहफा जनता को दिया है, लेकिन आज भी भारतीय रेलवे भीषण रेल दुर्घटनाओं को रोकने में नाकाम है। भारतीय रेलवे में रेल हादसे एक बड़ा दाग है। भारत में रेल हादसों का एक बड़ा इतिहास है। 2 जून 2023 को ही उड़ीसा के बालासोर में भीषण रेल हादसा हुआ था जिसमें 270 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। विपक्ष ने भी रेल हादसे पर जमकर हंगामा काटा था। रेल मंत्रालय ऐसी भीषण रेल हादसों को रोकने की कवायद में लगातार जुटा हुआ है। रेल मंत्रालय द्वारा ऐसे हादसों पर पिछले चार-पांच वर्षों से कवच नामक सुरक्षा प्रणाली पर काम किया जा रहा है। रेलवे अधिकारियों के अनुसार रेलवे की यह “कवच सुरक्षा प्रणाली” बालासोर रेल हादसों को रोकने में शत प्रतिशत कामयाब होगी। मथुरा-पलवल रूट पर दो दिन पूर्व ही वंदे भारत ट्रेन में भारतीय रेलवे की चेयरमेन ने खुद कवच को परखा है और उसे खरा पाया है। कवच का लगातार ट्रायल हो रहा है। उत्तर मध्य रेलवे के साथ साथ कई अन्य जोन में भी ट्रायल तेजी के साथ हो रहा है।
तेजी से हो रहा है ट्रायल
आगरा रेल मंडल के आगरा दिल्ली रूट के बीच पलवल से लेकर वृंदावन के मध्य वंदे भारत ट्रेन से कवच प्रणाली का ट्रायल किया गया। वंदे भारत ट्रेन में कवच टेक्नोलॉजी लगाई गई और रेलवे ट्रैक पर बंदी भारत को दौड़ाया गया। इस दौरान रेलवे की सेफ्टी टीम ट्रायल से संतुष्ट नजर आई और कवच पर मुहर भी लगाई।
सभी ट्रेनें कवच से होंगी लैस
सीपीआरओ हिमांशु शेखर ने बताया कि वंदे भारत, गतिमान, शताब्दी, राजधानी एक्सप्रेस ही नहीं देश की हर ट्रेन कवच से लैस होगी। वंदे भारत सहित नए सभी इंजनों में कवच प्रणाली को सेट करने के बाद ही भेजा जा रहा है। उन्होंने बताया कि कवच सुरक्षा प्रणाली देश के रेल इतिहास में मील का पत्थर साबित होगी। आख़िर ट्रेनों में कवच सुरक्षा प्रणाली किस तरीके से काम करेगी और कहां-कहां इस सिस्टम को लगाया जाएगा।
आगरा रेल मंडल में कवच टेक्नोलॉजी के हुए ट्रायल को लेकर आगरा रेल डिवीज़न की पीआरओ प्रशस्ति श्रीवास्तव ने बताया कि पलवल से वृंदावन के बीच कवच टेक्नोलॉजी का ट्रायल किया गया था। कवच टेक्नोलॉजी को वंदे भारत ट्रेन के इंजन में लगाया गया था और फिर सेफ्टी के लिए हाजियों से ट्रैक पर दौड़ी थी जो पूरी तरह से सफल रहा है। उनका कहना था कि ट्रेन हादसों को रोकने के लिए लाया जा रहा यह कवच सुरक्षा तंत्र इंजन, लेबल क्रासिंग, सिग्नल एवं रेलवे स्टेशन पर प्रमुखता के साथ लगाया जाएगा। भविष्य में इसे और विस्तार दिया जा सकता है। उन्होंने बताया कि कवच TCAS (Train Collision Avoidance System) पर काम करता है।
आख़िर कैसे काम करेगा रेलवे का कवच
1. ये सिस्टम कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस का सेट है। इसमें रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइसेस को ट्रेन, ट्रैक, रेलवे सिग्नल सिस्टम और हर स्टेशन पर एक किलोमीटर की दूरी पर इंस्टॉल किया जाता है। ये सिस्टम दूसरे कंपोनेंट्स से अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रिक्वेंसी के जरिए कम्यूनिकेट करता है।
2. जैसे ही कोई लोको पायलट किसी सिग्नल को जंप करता है, तो कवच एक्टिव हो जाता है। इसके बाद सिस्टम लोको पायलट को अलर्ट करता है और फिर ट्रेन के ब्रेक्स का कंट्रोल हासिल कर लेता है। जैसे ही सिस्टम को पता चलता है कि ट्रैक पर दूसरी ट्रेन आ रही है, तो वह पहली ट्रेन के मूवमेंट को रोक देता है। सिस्टम लगातार ट्रेन की मूवमेंट को मॉनिटर करता है और इसके सिग्नल भेजता रहता है।
3. अब इस पूरी प्रक्रिया को आसान भाषा में समझते हैं। इस टेक्नोलॉजी की वजह से जैसे ही दो ट्रेन एक ही ट्रैक पर आ जाती हैं, तो एक निश्चित दूरी पर सिस्टम दोनों ही ट्रेनों को रोक देता है। अगर दावों की मानें तो जब कोई ट्रेन सिग्नल जंप करती है तो 5 किलोमीटर के दायरे में मौजूद सभी ट्रेनों की मूवमेंट रुक जाएगी।
दरअसल, इस कवच सिस्टम को अभी सभी रूट्स पर इंस्टॉल नहीं किया गया है। इसे अलग-अलग जोन में धीरे-धीरे इंस्टॉल किया जा रहा है।