- आगरा कॉलेज में ‘गीता के आलोक में महामना’ विषयक वैचारिक विमर्श, वक्ताओं ने रखे प्रेरणादायी विचार
आगरा। महामना मालवीय मिशन, आगरा संभाग एवं आगरा कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को आगरा कॉलेज की सेमिनार कक्ष में “गीता के आलोक में महामना का जीवन और प्रेरणा” विषय पर विचार संगोष्ठी का आयोजन हुआ।
संगोष्ठी का शुभारंभ मुख्य अतिथि डॉ आरएस पारीख, संस्था के संरक्षक एवं चेयरमैन फुटवियर एवं चमड़ा उद्योग विकास परिषद पूरन डावर, अध्यक्ष प्रो उमापति दीक्षित, मनीषी प्रेम प्रकाश ने महामना मदन मोहन मालवीय जी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया। संगोष्ठी में गीता के ज्ञान के महत्व को रखते हुए पूरन डावर ने कहा कि गीता हमारे संपूर्ण जीवन का सार है। लेकिन केवल श्लोक पढ़ने या रटवाने से कुछ नहीं होगा। जब तक गीता को स्कूली और कॉलेज शिक्षा का हिस्सा बनाकर अर्थ के साथ पढ़ाया नहीं जाएगा, तब तक इसका मर्म युवा पीढ़ी तक नहीं पहुंचेगा। गीता को समझाना और उससे जुड़ना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
प्रो. उमापति दीक्षित, अध्यक्ष, महामना मालवीय मिशन ने कहा कि “गीता जीवन का व्यावहारिक शास्त्र है। इसे केवल श्रद्धा नहीं, बल्कि क्रियात्मक ज्ञान के रूप में आत्मसात करना होगा। महामना मालवीय ने गीता को केवल पढ़ा नहीं, जिया है।”
डॉ. आर एस पारिख, ने अपने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रकाल जीवन का संस्मरण करते हुए बताया कि “महामना के सत्संग में जब भी सम्मिलित होने का अवसर मिला, उन्होंने हमेशा एक ही बात दोहराई – जब तक हम अपनी संस्कृति पर गौरव नहीं करेंगे, तब तक विश्व भी उसे सम्मान नहीं देगा। अंग्रेजों ने हमारी संस्कृति पर पहला प्रहार किया था। आज शेक्सपियर का गुणगान होता है, जबकि कालिदास उनसे कहीं श्रेष्ठ हैं। इसी प्रकार होम्योपैथी को जर्मन चिकित्सा कहा जाता है, जबकि इसके बीज भारत में हैं। हमें अपनी संस्कृति को पुनः पहचानने की आवश्यकता है।
प्रो. हरिवंश पाण्डेय, प्रभारी गीता प्रकोष्ठ ने कहा, *“गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के कर्म, चिंतन और जीवनशैली का मार्गदर्शन है। जब हम इसके श्लोकों को आत्मसात करेंगे, तभी समाज में सार्थक परिवर्तन संभव है।”
आचार्य प्रेम प्रकाश शास्त्री ने भावपूर्ण प्रस्तुति में कहा – “मुसीबत में अपना बनती है गीता, पैग़ाम में सदाकत सुनाती है गीता।” उन्होंने संस्कृत श्लोकों और व्याख्या के माध्यम से गीता को जन-जन से जोड़ने वाला सुंदर शब्दचित्र प्रस्तुत किया।
संगोष्ठी में महासचिव राकेश चंद्र शुक्ला, हेमंत द्विवेदी, प्रो ब्रजेश चंद्रा, प्रो. विजय कुमार सिंह, वेद प्रकाश त्रिपाठी, प्रो. लवकुश मिश्रा, डॉ राजेंद्र मिलन, दिलीप पांडे, अशोक चौबे, भंवर सिंह सारस्वत, डॉ सचिपति पांडे, पीके सारस्वत, शिव कुमार सारस्वत, भोजराज शर्मा, प्रकाश चंद्रगुप्त, गोविंद मोहन शर्मा, कमल भारद्वाज, राजेंद्र वर्मा आदि उपस्थित रहे।