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विलुप्त हो रही बहरूपिया प्रथा पर छाया रोजी रोटी का संकट

by pawan sharma

आगरा। पुरातन काल में राजा महाराजाओं के मनोरंजन के लिए बहरूपिया की व्यवस्था की जाती थी जो विभिन्न प्रकार के रूप धारण करके अपने मालिक का मनोरंजन किया करते थे। पुरातन काल में चली आ रही व्यवस्था अब धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर है। जिसका मुख्य कारण है विज्ञान द्वारा प्रगति करना और मनोरंजन के विभिन्न साधनों का आ जाना।

फतेहाबाद क्षेत्र में पिछले 4 दिनों से एक बहरूपिया विभिन्न प्रकार के रूप धारण करके लोगों का मनोरंजन करता हुआ घूम रहा है। बात करने पर पता चला कि वह राजस्थान के बांदीकुई का निवासी है और पिछले कई माह से उत्तर भारत की यात्रा पर है। बहरूपिया छीतर लाल ने बताया कि उसके ग्रुप में 5 लोग हैं जो अपनी आजीविका का एक मात्र साधन के लिए विभिन्न प्रकार के रूप धारण कर लोगों का मनोरंजन करते हैं। उनका मुख्य आकर्षण जानी दुश्मन, राधा कृष्ण, सोनी महिवाल, लैला मजनू राजा दशरथ तथा लंगूर है।

उन्होंने बताया कि पूरे दिन लोगों का मनोरंजन करने के बाद ही उनकी आजीविका के लायक साधन बन जाता है लेकिन कभी कभी दो वक़्त की रोटी कमाना भी मुश्किल हो जाता है।

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