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किसान बिल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मोदी सरकार को फ़टकार, नहीं चाहिए ख़ून-ख़राबा

by admin
Big decision of Supreme Court, this decision regarding Benami Transactions Act

केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि बिलों को लेकर दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर किसान करीब डेढ़ महीने से डटे हुए हैं। इसी बात को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानून के मुद्दे पर सुनवाई की। वहीं सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई मुद्दों पर सेंट्रल गवर्नमेंट को फटकार भी लगाई। बता दें मंगलवार को एक बार फिर इस मसले पर सुनवाई होनी है।फिलहाल उम्मीद जताई जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट इस सुनवाई के दौरान अपना फैसला देगी। सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के प्रति संवेदनशीलता रखते हुए कहा कि आंदोलन में मौजूद बच्चों महिलाओं और बुजुर्गों लोगों को घर भेजा जाना चाहिए। इतनी ठंड में आखिर आंदोलन क्यों है? यदि हम कृषि कानूनों को स्थगित कर देते हैं तो किसानों के लिए आंदोलन का कोई विकल्प नहीं होगा।इसके अतिरिक्त भी और भी कई बातें सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान कही गई।

सुनवाई के दौरान मौजूद जस्टिस बोबडे ने कहा कि मुझे जोखिम लेने दीजिए और कहने दीजिए मुख्य न्यायाधीश का कहना था कि आंदोलनकारी किसान अपने घर वापस लौट जाएं। इसके बाद हरीश साल्वे ने कहा कि कृषि कानूनों पर स्टे लगाने से अन्य कानूनों पर भी स्टे लगाने की मांग उठेगी। वहीं किसानों के वकील दुष्यंत दवे ने किसानों से बात करने की बात रखी और कहा कि 400 संगठन हैं,इसलिए बात करना बेहद जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने जो समिति गठित करने की सलाह दी उसमें यह कहा गया कि सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को इस समिति में शामिल किया जाएगा। जो भी समिति की सलाह होगी, उसके आधार पर कानून पर स्टे लगा दिया जाएगा।इस दौरान जस्टिस बोबडे ने कहा कि किसान हम पर भरोसा करें या ना करें लेकिन हम अपना कर्तव्य निभाएंगे।

Supreme court rebukes the farmers bill for the farmers bill, it does not want bloodshed

वहीं मौजूद अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार 15 जनवरी को एक बार फिर वार्ता करना चाहती है। फिलहाल कोर्ट कानूनों को स्टे नहीं कर सकता और अगर करता है तो यह एक अतिवादी कदम होगा।दरअसल मिली जानकारी के मुताबिक 26 जनवरी को किसान 2000 ट्रैक्टर की ट्राली निकालना चाहते हैं इसे लेकर सरकार भी चिंतित है। फिलहाल किसानों के वकील ने बताया कि ऐसी कोई रैली नहीं निकाली जा रही है। इस बात पर चीफ़ जस्टिस बोबडे ने कहा कि अगर किसान रैली नहीं निकाल रहे हैं तो यह अच्छी बात है लेकिन आंदोलन चल रहा है कभी भी कोई बड़ी गड़बड़ हो सकती है हालांकि यह पुलिस का काम है और पुलिस कानून व्यवस्था का यह मुद्दा देखेगी। लेकिन हम नहीं चाहते कि किसी प्रकार का कोई खून खराबा और हिंसा हो।फिलहाल चीफ जस्टिस ने सरकार की प्रतिक्रिया पर निराशा जाहिर की है।उन्होंने कहा कि हम नहीं जानते कि आपकी कानून बनाने से पहले क्या परामर्श प्रक्रिया है लेकिन फिलहाल कई राज्य विद्रोह में हैं।हमें यह कहते हुए खेद है कि आप, भारत संघ के रूप में, समस्या का समाधान नहीं कर पा रहे हैं। आपने बिना किसी परामर्श के कानून बनाया है, जिसके परिणामस्वरूप आंदोलन हो रहे हैं। इसलिए आपको इसका समाधान करना होगा।

गौरतलब है कि दिल्ली की सीमाओं पर पिछले करीब डेढ़ महीने से डटे प्रदर्शनकारी किसानों के आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में नए कृषि कानूनों और किसानों से संबंधित विभिन्न मसलों पर आदेश सुनाएगा।

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