आगरा। श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान, वैराग्य और भक्ति की त्रिवेणी है। आजकल लोगों में भक्ति तो बहुत बढ़ रही है लेकिन ज्ञान और वैराग्य शून्य हो गया है। मंदिरों में भीड़ है, भागवत कथाएं भी खूब हो रही है, लेकिन मन से भौतिकता और अधिक पाने की चाह नहीं मिट रही है। यह बात भगवताचार्य दिनेश दीक्षित ने सूर्य नगर स्थित समाधि पार्क में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिन कहते हुए श्रीमद्भागवत कथा का महात्मय व धुन्धकारी की कथा का वर्णन किया।
उन्होंने कहा कि जो श्रीमद्भागवत कता के महात्मय जो समझ लेगा वह इसका श्रवण जरूर करेगा। क्योंकि लोग महत्व नहीं जानते इसलिए सुनते नहीं। भागवत कथा मोक्ष दायनी और कल्पतरु फल प्रदायत भी है। फिर भी समस्याएं कम नहीं हो रही। श्रद्धालुओं को समझाते हुए कहा कि आईएएस की परीक्षा में हजारों विद्यार्थी बैठते हैं लेकिन पास वही होते हैं मेहनत करते हैं। जो भागवत का अच्छी तरह से अनुसरण करते है उन्हीं को फलदायी है श्रीमद्भावत कथा। यह मनोरंजन का नहीं आत्मरंजन का साधन है। कथा को सुनने-सुनने का भेद है।
भागवताचार्य ने कहा कि इंद्रियों से परे मन, मन से परे बुद्धि और बुद्धि से परे आत्मा। जब मन बुद्धि को आदेश देता है तो हम विकृत मानसिकता की ओर बढ़ते हैं और जब बुद्धि मन को आदेश देती है तो सुकृत मनसकिता की आदेश देते हैं। गोकर्ण व धुन्धकारी की कथा सुनाते हुए कहा कि हर व्यक्ति में दोनों का वास है। धुन्धकारी नकारात्मकता और गोकर्ण सकारात्मकता का प्रतीक है।
कथा का शुभारम्भ डॉ. कैलाश सारस्वत ने दीप प्रज्जवलित कर किया। कथा के विराम होने पर डॉ. महेश शर्मा ने आरती। अन्त में सभी भक्तों को प्रसाद वितरण किया गया। इस अवसर पर मुख्य रूप से आशुतोष शर्मा, उमा अग्रवाल, श्रद्धा दीक्षित, संजू जादौन आदि उपस्थित रहे।