Home » वेद रूपी कल्पवृक्ष का रसमय फल है श्रीमद्भागवत कथा, कलियुग केवल हरि गुन गाहा, गावत नर पावहिं भव थाहा…

वेद रूपी कल्पवृक्ष का रसमय फल है श्रीमद्भागवत कथा, कलियुग केवल हरि गुन गाहा, गावत नर पावहिं भव थाहा…

by pawan sharma

आगरा। श्रीमद्भागवत कथा कल्पवृक्ष रूपी वेदों का रसमय फल है। कलयुग में संसार रूपी भवसागर को पार करने के लिए श्रीहरि का नाम ही सहायक है। सतयुग, त्रैत्रा और द्वापर में जो फल कठिन तपस्या से प्राप्त होता था, कलयुग में केवल श्रीहरि की भक्ति और भजन के प्राप्त हो सकता है। यहां तक की मन में प्रभु के चिन्तन मात्र से भी प्रभु अपने भक्तों के कष्ट हर लेते हैं। परन्तु भक्ति निस्वार्थ होनी चाहिए। राजा परिक्षित व कलयुग के बीच प्रसंग का वर्णन करते हुए आज श्रमद्भवताचार्य डॉ. श्यामसुन्दर पाराशर ने कलयुग में श्रीहरि के भजन और भक्ति की महिमा का वर्णन किया। भीष्म व कुन्ति स्तुति के संगीतमय वर्णन ने जहां भक्तों को भावुक कर दिया। वहीं परिक्षित की जन्म कथा सुन कथा स्थल पर श्रीहरि के जयकारे गूंजने लगे।

फतेहाबाद रोड स्थित राज देवम रिसार्ट में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा आज व्यासपीठाचार्य डॉ. श्यामसुन्दर पाराशर ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा कि धर्म का आचरण सत्य का पालन होता है। सेवा में जब कपट और स्वार्थ आ जाए तो वह कपट पूर्ण धर्म बन जाता है। निष्काम भाव से वेद शास्त्रों की आज्ञा का पालन करना ही सच्चा धर्म है। कहा धर्म चार पैरों पर खड़ा होता है। सत्य, तप, दया और पवित्रता। परन्तु आज धर्म सिर्फ एक ही पैर सत्य पर खड़ा है। तप, दया और पवित्रता का लोप हो गया है।

राजा परिक्षित व कलयुग के संवाद का वर्णन करते हुए कहा कि जुआ, मदिरापान, व्यभिचार और हिंसा ये कलयुग के चार केन्द्र बिन्दु हैं। कलयुग के प्रभाव से बचना है तो इनसे चारों से दूरी बनाकर रखें। केवल हरिनाम ही कलयुग के प्रभाव से बचा सकता है। निर्विकार शुकदेव व राजा परिक्षित की जन्मकथा का वर्णन करते हुए बताया कि कैसे श्रीहरि ने उत्तरा के गर्भ में अर्जुन पुत्र परीक्षित की रक्षा की।

उमा कहऊं मैं अनुभव अपना, सत हरि भजन जगत सब सपना…

तुलसीदास जी के भजन में बोलेनाथ व माता पार्वती के संवाद उमा कहऊं मैं अनुभव अपना, सत हरि भजन जगत सब सपना… की व्याख्या करते हुए कहा कि सिर्फ श्रीहरि का भजन ही सत्य। जगत तो केवल सपना है। श्रीहरि का भक्त बनने पर ही जगत की माया का खेल समझा जा सकता है। सत, रज और तम से निर्मित जगत सत्य ही लगता है। ज्ञान वैराग्य की दृष्टि मिलने पर ही सत्य का भान होता है। श्रीहरि की माया के स्वरूप का ज्ञान हो गया तो समझो कल्याण हो गया।

संतोष शर्मा व उनकी धर्मपत्नी ललिता शर्मा ने अंत में आरती की। इस अवसर पर मुख्य रूप से कैबिनेट मंत्री बेबीरानी मौर्य, राजा अरिदमन सिंह, डॉ. राजेन्द्र सिंह, पीएल शर्मा, धनकुमार जैन, सुनील शर्मा, भवेन्द्र जी, मुरारीलाल दीक्षित, जितेन्द्र रावत, मदुसुदन शर्मा, मनोजकुमार गुप्ता आदि उपस्थित रहे।

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