जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद 8 अगस्त गुरुवार को रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विषय पर देश के नाम संबोधन दिया। उनका यह संबोधन हमने उसी रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है जो पीएम मोदी ने दिया है –
एक राष्ट्र के तौर पर, एक परिवार के तौर पर, आपने, हमने, पूरे देश ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है। एक ऐसी व्यवस्था, जिसकी वजह से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के हमारे भाई-बहन अनेक अधिकारों से वंचित थे, जो उनके विकास में बड़ी बाधा थी, वो अब दूर हो गई है। जो सपना सरदार पटेल का था, बाबा साहेब अंबेडकर का था, डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का था, अटल जी और करोड़ों देशभक्तों का था, वो अब पूरा हुआ है। समाज जीवन में कुछ बातें, समय के साथ इतनी घुल-मिल जाती हैं कि कई बार उन चीजों को स्थाई मान लिया जाता है। ये भाव आ जाता है कि, कुछ बदलेगा नहीं, ऐसे ही चलेगा।
अनुच्छेद 370 के साथ भी ऐसा ही भाव था। उससे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के हमारे भाई-बहनों की जो हानि हो रही थी, उसकी चर्चा ही नहीं होती थी। हैरानी की बात ये है कि किसी से भी बात करें, तो कोई ये भी नहीं बता पाता था कि अनुच्छेद 370 से जम्मू-कश्मीर के लोगों के जीवन में क्या लाभ हुआ।
हमारे देश में कोई भी सरकार हो, वो संसद में कानून बनाकर, देश की भलाई के लिए काम करती है। किसी भी दल की सरकार हो, किसी भी गठबंधन की सरकार हो, ये कार्य निरंतर चलता रहता है। कानून बनाते समय काफी बहस होती है, चिंतन-मनन होता है, उसकी आवश्यकता को लेकर गंभीर पक्ष रखे जाते हैं। इस प्रक्रिया से गुजरकर जो कानून बनता है, वो पूरे देश के लोगों का भला करता है। लेकिन कोई कल्पना नहीं कर सकता कि संसद इतनी बड़ी संख्या में कानून बनाए और वो देश के एक हिस्से में लागू ही नहीं हों।
देश के अन्य राज्यों में सफाई कर्मचारियों के लिए सफाई कर्मचारी एक्ट लागू है,
लेकिन जम्मू-कश्मीर के सफाई कर्मचारी इससे वंचित थे। देश के अन्य राज्यों में दलितों पर अत्याचार रोकने के लिए सख्त कानून लागू है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में ऐसा नहीं था। देश के अन्य राज्यों में अल्पसंख्यकों के हितों के संरक्षण के लिए माइनॉरिटी एक्ट लागू है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में ऐसा नहीं था।
देश के अन्य राज्यों में श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए Minimum Wages Act लागू है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में ये सिर्फ कागजों पर ही मिलता था।नई व्यवस्था में केंद्र सरकार की ये प्राथमिकता रहेगी कि राज्य के कर्मचारियों को, जम्मू-कश्मीर पुलिस को, दूसरे केंद्र शासित प्रदेश के कर्मचारियों और वहां की पुलिस के बराबर सुविधाएं मिले।
जल्द ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में केंद्रीय और राज्य के रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इससे स्थानीय नौजवानों को रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। केंद्र की पब्लिक सेक्टर यूनिट्स और प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों को भी रोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
हमने जम्मू-कश्मीर प्रशासन में एक नई कार्यसंस्कृति लाने, पारदर्शिता लाने का प्रयास किया है। इसी का नतीजा है कि IIT, IIM, एम्स, हों, तमाम इरिगेशन प्रोजेक्ट्स हो, पावर प्रोजेक्ट्स हों, या फिर एंटी करप्शन ब्यूरो, इन सबके काम में तेजी आई है।
आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि जम्मू-कश्मीर में दशकों से, हजारों की संख्या में ऐसे भाई-बहन रहते हैं, जिन्हें लोकसभा के चुनाव में तो वोट डालने का अधिकार था, लेकिन वो विधानसभा और स्थानीय निकाय के चुनाव में मतदान नहीं कर सकते थे। ये वो लोग हैं जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान से भारत आए थे। क्या इन लोगों के साथ अन्याय ऐसे ही चलता रहता।
हम सभी चाहते हैं कि आने वाले समय में जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव हों,
नई सरकार बने, मुख्यमंत्री बनें।
मैं जम्मू-कश्मीर के लोगों को भरोसा देता हूं कि आपको बहुत ईमानदारी के साथ, पूरे पारदर्शी वातावरण में अपने प्रतिनिधि चुनने का अवसर मिलेगा।
जैसे पंचायत के चुनाव पारदर्शिता के साथ संपन्न कराए गए, वैसे ही
विधानसभा के भी चुनाव होंगे। मैं राज्य के गवर्नर से ये भी आग्रह करूंगा कि ब्लॉक डवलपमेंट काउंसिल का गठन, जो पिछले दो-तीन दशकों से लंबित है, उसे पूरा करने का काम भी जल्द से जल्द किया जाए।
मुझे पूरा विश्वास है कि अब अनुच्छेद 370 हटने के बाद, जब इन पंचायत सदस्यों को नई व्यवस्था में काम करने का मौका मिलेगा तो वो कमाल कर देंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि जम्मू-कश्मीर की जनता अलगाववाद को परास्त करके नई आशाओं के साथ आगे बढ़ेगी। जम्मू-कश्मीर की जनता, Good Governance और पारदर्शिता के वातावरण में, नए उत्साह के साथ अपने लक्ष्यों को प्राप्त करेगी।
दशकों के परिवारवाद ने जम्मू-कश्मीर के युवाओं को नेतृत्व का अवसर ही नहीं दिया। अब मेरे युवा, जम्मू-कश्मीर के विकास का नेतृत्व करेंगे और उसे नई ऊंचाई पर ले जाएंगे। मैं नौजवानों, वहां की बहनों-बेटियों से आग्रह करूंगा कि अपने क्षेत्र के विकास की कमान खुद संभालिए।
जम्मू-कश्मीर के केसर का रंग हो या कहवा का स्वाद, सेब का मीठापन हो या खुबानी का रसीलापन, कश्मीरी शॉल हो या फिर कलाकृतियां, लद्दाख के ऑर्गैनिक प्रॉडक्ट्स हों या हर्बल मेडिसिन, इसका प्रसार दुनियाभर में किए जाने का जरूरत है।