आगरा। जिस महारास में योगेश्वर संग काम को अपने नेत्र से भस्म करने वाली शिव शंकर ता-ता थैया कर रहे हो वहां भला काम-वासना कैसे हो सकती है। महारास काम विजय क्रीड़ा है। जहां योगेश्वर श्रीकृष्ण ने काम का मान मर्दन किया है। महारास पूर्णिमा और रात के ऐसे समय में हुआ जब काम सर्वाधिक बलशाली होता है। पूर्णिमा पर मन के देवता चंद्रमा शक्तिशाली तो काम अधिक उद्दीप्त होता है। ऐसी परिस्थिति में भी कामदेव श्रीहरि को नहीं हरा पाया। योगेश्वर के चित्त पर पर कोई विकार पैदा नहीं कर पाया। तब कामदेव ने श्रीकृष्ण की स्तुति की और अच्युत नाम दिया। जिसका अर्थ है अविनाशी, जिसके चित्त पर किसी का प्रभाव न पड़े।
फतेहाबाद रोड स्थित राज देवम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में आज व्यासपीठापार्य डॉ. श्यामसुन्दर पाराशर में महारास का वर्णन करते हुए कहा महारास वो परमानन्द है जिसमें हर किसी का प्रवेश सम्भव नहीं। वस्त्र हरण प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि 6 वर्ष की उम्र में श्रीकृष्ण ने जीवात्मा रूपी गोपिया के ऊपर चढ़े, माया रूपी वस्त्रों का आवरण हटाने के लिए यह लीला रची। परन्तु अज्ञानवश लोग वस्त्र हरण व महारास को काम-वासना से जड़ते हैं। महारास में मायारूपी आवरण के साथ प्रवेश नहीं का जा सकता। महारास में प्रवेश पाने के लिए सात सीढ़ियों को पार करना होता है।
पहली सीढ़ी भक्तमुख से श्रीमद्बागवत कथा का श्रवण, नवधा भक्ति का आचरण, सद् गुरु का वरण, विरक्ति, शरीर व संसार से मोह त्याग, दिव्य रास मण्डप का मन में भाव तब कहीं सातवीं सीढ़ी पर महारास में प्रवेश मिलता है। किन्तु परन्तु से ऊपर की लीला है महारास। महारास के वर्णन के साथ राधा नाचे, कृष्ण नाचे, नाचे गोपी संग, मन मेरो बन गया री सखी पावन वृन्दावन…, रास रचौ है, रास रचौ है, गोपिन के संग कान्हा रास रचौ है… जैसी भजनों पर श्रद्धालु भक्ति में खूब झूमें।
कंस वध पर कृष्ण कन्हैया के जयकारों से गूंजा कथा पंडाल
कुबड़ी का उद्धार और तमाम दैत्यों के वध के बाद कंस वध होने पर कृष्ण कन्हैया और बांके बिहारी के जयकारों से कथा पंडाल गूंज उठा। आकाश से देवता श्रीहरि के पर पुष्प वर्षा करने लगे। उज्जैन अवन्तिकापुरी में भगवान शिक्षा ग्रहण करने गए। भगवान को ज्ञानी प्रिय हैं, अभिमानी नहीं। ज्ञानी अभिमानी न बने यह बहुत मुश्किल है। उद्धव जी के ज्ञान पर लगी अभिमान की जंग को वृन्दावन श्रीहरि की भक्ति में डूबी गोपियों के पास भेजकर हटाया। श्रीकृष्ण परमतत्व है। जिसमें सभी रस समाहित है। अलौकिक वृन्दावन के दर्शन चर्म चक्षुओं से नहीं किए जा सकते। दिव्य वृन्दावन के दर्शन के लिए श्रीकृष्ण ने उद्धव को दिव्य दृष्टि दी।
श्रीकृष्ण रुक्मणी विवाह के उत्सव में श्रीकृष्ण व रादा बनकर पहुंचे स्वरूपों का विधि विधान से पूजन किया गया। संतोष शर्मा व उनकी धर्मपत्नी ललिता शर्मा ने आरती कर सभी भक्तों को प्रसाद वितरण किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से सांसद रामशंकर कठेरिया, रामसकल गुर्जर, विधायक छोटेलाल वर्मा, अध्यक्ष जिला पंचायत मंजू भदौरिया, आननंद शर्मा, मनीष थापा, मनीष शर्मा, विवेक उपाध्याय आदि उपस्थित रहे।
नेत्र रोग शिविर में हुआ 300 लोगों की परीक्षण
श्रीमद्भागवत कथा में सुबह 10 से दोपहर 1 बजे तक नि:शुल्क नेत्र रोग शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें 300 से अधिक लोगों का परीक्षण एसएन मेडिकल कालेज के वरिष्ठ चिकित्सकों द्वारा किया गया। 125 लोगों को निशुल्क चश्मा वितरण व 50 लोगों का चयन मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए किया गया।