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पेठे की खेती करेगी यमुना मैया के प्रदूषण को मुक्त

by admin

• कौशाम्बी फाउंडेशन व डिपार्टमेंट ऑफ हिस्ट्री एंड कल्चर के संयुक्त संयोजन से संस्कृति विभाग में तीन दिवसीय कार्यशाला में आज रिसर्च पेपर प्रिजेन्ट किए गए
• इंटरनेशनल कांफ्रेंस इन मल्टीडिसिप्लिनरी रिसर्च एंड प्रैक्टिस फार सस्टेनेबल डलवपमेंट एंड इनोवेशन कार्यशाला में इटली, यूएस, कनाडा, श्रीलंका सहित 500 से अधिक प्रतिनिधि ले रहे भाग

आगरा। ताजनगरी में यमुना के प्रदूषण को पेठे की खेती दूर करेगी। खरबूज व तरबूज की तरह यमुना किनारे पेठे की खेती की जाए तो यमुना के पानी में हैवी मैटेल (जिंक, कैड्मियम, लेड, निकिल, क्रोमियम) जैसे प्रदूषण को दूर किया जा सकता है, जो कैंसर सहित कई घातक रोग के लिए जिम्मेदार हैं। सेंट जॉन्स कालेज में वनस्पति विभाग की शोधार्थी तलद खान ने आज विवि के संस्कृति विभाग में कौशाम्बी फाउंडेशन, नीलम ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन व डिपार्टमेंट ऑफ हिस्ट्री ड कल्चर से संयुक्त संयोजन में इंटरनेशनल कांफ्रेंस इन मल्टीडिसिप्लिनरी रिसर्च एंड प्रैक्टिस फार सस्टेनेबल डलवपमेंट एंड इनोवेशन में अपने शोधपत्र प्रस्तुत करते हुए बताया कि फाइटोरेमीडेशन ऑफ हैवी मैटेल कन्टेमिनेशन वॉटर एंड सोइल ऑफ यमुना रिवर विषय पर तीन वर्ष के शोध के दौरान यह नतीजे प्राप्त किए। कहा कि कैलाश मंदिर, दयालबाग इंडस्ट्रीयल क्षेत्र, धांधुपुरा क्षेत्र में माह में तीन बार अलग-अलग समय पर यमुना के पानी की जांच की गई। जहां ट्रीटमेंट किए बगैर व्यवसायिक व सीवर का पानी सीधे यमुना में डाला जाता है। यहां यमुना की मिट्टी में हैवी मैटेल की मात्रा बहुत अधिक थी, जो न के बराबर होनी चाहिए। हैवी मैटेल, लिवर, किडनी सहित कैंसर जैसे रोगों के लिए भी जिम्मेदार हैं। हमने अपने शोध में पाया कि कुकरविटेसी फैमिली का पौधा बेनिनकेसा हिस्पेडा (पेठा) की पौध हैवी मैटेल के प्रदूषण को सबसे अधिक मात्रा में शोषित कर लेता है, जिससे यमुना के पानी व मिट्टी में मौजूद हैवी मैटेल का प्रदूषम तेजी से कम हुआ। यानि कुकरबिटेसी फैमिली के तरबूज और खरबूज की खेती साथ पेठे की खेती यमुना किनारे की जाए तो यमुना के प्रदूषण तो तेजी से काफी कम किया जा सकता है।

मिलीग्राम/प्रति किग्रा
सामान्य स्थिति में पेठे के पौधे से ट्रीटमेंट के बाद केंचुए की खाद के साथ ट्रीटमेंट
जिंकः 383 200 64
निकिलः 120 28 22
लेडः 202 58 44
कैड्मियमः 52 24 26
क्रोमियमः 249 122 87

वहीं जवाहरलाल नेहरू एग्रीकल्चरल विवि के एक्सटेंन्सन एजूकेशन टीकमगढ़ कैम्पस के अध्यक्ष डॉ. एसपी सिंह ने बताया कि किस तरह से उनके संस्थान में भारतीय अनुसंधान परिषद से प्राप्त परियोजना प्रोजेक्ट के तहत ग्लूटन फ्री गेंहूं के बीज तैयार किए जा रहे हैं। ग्लूटन फ्री गेंहूं से तैयार आटे में खिंचाव कम और स्वास्थ्य के लिए अधिक लाभदायक होता है। नैनों तकनीक के जरिए जीन्स में परिवर्तन कर फसल, फल और फूलों की ऐसी नस्लें तैयार की जा रही हैं जिन पर बीमारियां नहीं लगती। जिस कारण कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना पड़ता। बताया कि मप्र गेंहूं की पैदावार के लिए बहुक बड़ा क्षेत्र है। परन्तु कुछ क्षेत्रों में पानी की कमी है। इसलिए ऐसे बीच बी तैयार किए गए हैं, जिन की सिंचाई में कम पानी का प्रयोग होता है।

खेतों में पराली जलाने से घट रहा फसलों का उत्पादन
आगरा। हरियाणा रोहतक, बाबा मस्तनाथ विवि की डॉ, चंचल मल्होत्रा अपने सिलिकॉन फर्टीलिजर का शोध टमाटर व चावल की फसल पर किया। जिससे टमाटर की फसल मेंलगभग 20 प्रतिशत और चावल की फसल में 120 प्रतिशत उत्पादन बढ़ गया। इतना ही नहीं टमाटर में पाए जाने वाले एंटीकैंसरस लाइकोपीन पिगमेंट की मात्रा भी बढ़ गई। डॉ. चंचल ने बताया कि खेतों में पराली जलाना मिट्टी में सिलिकॉन की कमी होने का सबसे बड़ा कारण है। दक्षिण भारत में सिलिकॉन खाद का प्रयोग काफी किया जा रहा है, परन्तु उत्तर भारत में जागरूकता की कमी है। सामान्यतौर पर सिलिकॉन मिट्टी में पाया जाता है। गेंहूं व धान की फसल सबसे अधिक सिलिकॉन मिट्टी में से शोषित कर लेती है। फसल कटने बाद बची पराली में बहुत अधिक मात्रा में सिलिकॉन पाया जाता है। जिसे किसी तरह नरम बनाकर मिट्टी में मिला दिया जाए तो मिट्टी में सिलिकॉन की कमी नहीं रहेगी। सिलिकॉन को मिट्टी में मिलाने के लिए सिलिकन साल्यूबलाइजेशन बैक्टीरिया का प्रयोग किया जाता है, जिससे पराली नरम होकर मिट्टी में आसानी से घुल जाती है। सिलिकॉन खाद के प्रयोग से मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा भी बढ़ जाती है। आर्गेनिक कार्बन की मात्रा खेतों में रसायनिक खाद व कीटनाशकों के प्रयोग से लगातार कम हो रही है। आर्गेनिक कार्बन के बना मिट्टी मृत यानि बालू के समान हो जाती है। सिलिकॉन खाद का प्रयोग तीन वर्ष में एक बार करके ही किसान अपनी फसल की उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं।

18 को होगी अवार्ड सेरेमनी
आगरा। कौशाम्बी फाउन्डेशन के चेयरमैन लक्ष्य चौधरी ने बताया कि कार्यशाला में विभिन्न विषयों पर 150 रिसर्च पेपर व 50 पोस्टर प्रस्तुत किए जा रहे हैं। 18 दिसम्बर को सुबह 11 बजे से पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन किया जाएगा। आज रिसर्च पेपर प्रिजेन्टेशन कार्यक्रम का संयोजन विमल मोसाहरी ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से डॉ. नितिन वाही, प्रियांसी राजपूत, नीतू सिंह, अंकित वर्मा, तुषार चौधरी, संजय कुमार आदि मौजूद रहे।

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