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रामलीला के दूसरे दिन राजा दशरथ के घर चार राजकुमारों का हुआ जन्म, श्रीराम-लक्ष्मण ने किया ताड़का वध

by admin
On the second day of Ramlila, four princes were born in the house of King Dasharatha, Shri Ram-Lakshman killed Tadka

आगरा। जो आनंद सिंधु सुखरासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी॥
सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक बिश्रामा॥


श्री मन: कामेश्वर मंदिर परिसर में आयोजित नौ दिवसीय वर्चुअल रामलीला के दूसरे दिवस भगवान श्रीराम के जन्म की लीला का मंचन मंत्रमुग्ध करने वाला रहा। गुरु वशिष्ठ अपने आश्रम में ध्यान मुद्रा में बैठे हैं। इसी बीच राजा दशरथ का प्रवेश होता है। गुरुदेव उनसे आगमन का कारण पूछते हैं। इस पर राजा दशरथ कहते हैं गुरुदेव मेरा चौथापन आ गया है। मगर अब तक कोई संतान नहीं है। इस पर गुरुदेव उन्हें संतानोत्पत्ति के लिए यज्ञ कराने का निर्देश देते हैं। शृंगी ऋषि यज्ञ कराते हैं। यज्ञ सफल होने पर अग्निदेव प्रकट होते हैं और द्रव्य देकर राजा दशरथ से कहते हैं कि इसे अपनी रानियों को दे दीजिए, इसका सेवन करने से संतान अवश्य होगी।

अगले दृश्य में दशरथ महल के अंत:पुर का भव्य दर्शन होता है। राजा दशरथ के द्रव्य देने के बाद रानियां उन्हें ग्रहण करती हैं। अगले दृश्य में भगवान विष्णु प्रकट होते हैं और कौशल्या हतप्रभ सी उनके दर्शन करती हैं। इस बीच मंच पर पार्श्व संगीत भए प्रकट कृपाला, दीनदयाला, कौसल्या हितकारी… गूंजने लगता है। पूरा दृश्य उल्लासित नजर आता है। माता कौशल्या कहती हैं- हे तात आप यह विराट रूप त्याग कर अत्यंत प्रिय बाललीला कीजिये।

विष्णु जी अंतर्ध्यान होते हैं। फिर बच्चों के रोने की आवाजें सुनाई देती हैं और खुशी का संगीत बजने लगता है। अगले दृश्य में रामजन्म के समाचार से राजा दशरथ सहित संपूर्ण अयोध्या में खुशी छा जाती है। सुमंत महाराज दशरथ को बताते हैं कि महाराज प्रजा में हर्ष व्याप्त है, लोगों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। प्रजावासी नाचते-गाते हैं। अवधपुरी में आनंद हुआ है। राजकुमारों का जन्म हुआ है… घर-घर दीप जले मंगल द्वार सजे… गीत मंत्रमुग्ध करने वाला होता है।

रामलीला मंचन के क्रम में ही एक अन्य दृश्य में राजा दशरथ तीनों रानियों के साथ प्रभु राम की बाललीला का आनंद उठा रहे हैं। पार्श्व गीत ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया… बाल लीला के दृश्य को जीवंत करता प्रतीत हो रहा था। इसके बाद एक अन्य दृश्य में चारों भाइयों का नामकरण संस्कार किया जाता है।

ताड़का, सुबाहु और मारीच के आतंक से विश्वामित्र के अलावा जंगल में वास करने वाले अन्य संत जन भी परेशान थे। वह नियमित यज्ञ कार्य भी नहीं कर पा रहे थे। दुष्ट प्रकृति का सुबाहु यज्ञ स्थल पर मरे प्राणियों की हड्डी बिखेर देता। इससे परेशान होकर विश्वामित्र ने विचार किया और निर्णय लिया कि यज्ञ की रक्षा के लिए अयोध्या नरेश से राम और लक्ष्मण को मांग लें।

इसके बाद वह अयोध्या पहुंच गए। अयोध्या में उनका स्वागत राजा दशरथ ने किया। इसके बाद अयोध्या आने का कारण पूछा। तब उन्होंने उनसे राम और लक्ष्मण को मांग लिया। शुरू में तो राजा दशरथ पुत्र देने से इन्कार कर देते हैं कहते हैं कि आप चाहें तो मेरी सेना ले लें या उन राक्षसों का वध करने के लिए मैं चलूंगा । मोह के कारण राजा दशरथ राम लक्ष्मण को नहीं दे रहे थे। वह असमंजस में डूब गए।

गुरु वशिष्ट की सलाह पर महाराज दशरथ ने विश्वामित्र को राम और लक्ष्मण को सौंप दिया। विश्वामित्र अयोध्या से राम-लक्ष्मण को लेकर अपने आश्रम वापस लौट आये। जब राम-लक्ष्मण विश्वामित्र की कुटिया की ओर जाते हैं उन्हें मार्ग में ताड़का नाम की राक्षसी मिलती है। भगवान उसको एक ही बाण से मार देते हैं। आश्रम में रहकर राम और लक्ष्मण विश्वामित्र के यज्ञ स्थल की रक्षा करने लगे। यज्ञ के समय पर मारीच को वाण मारकर लंका भेज देते हैं और सुबाहू का वध कर देते हैं। इससे जंगल में रहने वाले अन्य साधु-संतों ने अपने को सुरक्षित महसूस किया।

तड़का, मारीच और सुबाहु का भगवान ने वध कर दिया। अब धनुष यज्ञ की ओर राम लक्ष्मण और विश्वामित्र जी चले जा रहे है। मार्ग में एक सुनसान आश्रम आया है। भगवान राम की नजर उस पर पड़ी है। भगवान राम जी पूछते हैं गुरुदेव ये किस प्रकार का आश्रम हैं। यहाँ पर लगता हैं पहले कोई रहता था पर अब ना कोई प्राणी हैं ना कोई जीव हैं। एकदम वीरान हैं ये आश्रम। और तो और यहाँ पर कोई कोई पशु-पक्षी,जीव-जंतु भी नही दिखाई देता हैं।

आश्रम एक दीख मग माहीं। खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं॥
पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी। सकल कथा मुनि कहा बिसेषी॥

दशरथ पुत्र राम के चरण रज जब भी उस पाषण पर पड़ेंगे वो मुक्त हो जायेगी।

विश्वामित्र जी कहते हैं हे राम! अहिल्या जी ने आपकी बहुत प्रतीक्षा की हैं। आप इनको अपने चरण कमल की रज(धूल) से पवित्र करो।

चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर॥

फिर भगवान ने अपने चरणों का स्पर्श अहिल्या जी को दिया हैं। और जैसे ही स्पर्श हुआ हैं वहां पर तपोमूर्ति अहिल्या जी प्रकट हो गई हैं।

अहिल्या जी भगवान की स्तुति प्रारम्भ करती हैं- हे ज्ञान से जानने योग्य श्री रघुनाथजी! आपकी जय हो। मैं एक अपिवत्र स्त्री हूँ लेकिन आप जगत को पवित्र करने वाले हो और भक्तों को सुख देने वाले हो। हे कमलनयन! मैं आपकी शरण आई हूँ, (मेरी) रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए। मुनि(मेरे पति) ने मुझे शाप दिया तो अच्छा ही किया क्योंकि आज आपके दर्शन मुझे मिले हैं और आपको इन नेत्रों से जी भर के देखा। जिस रूप को भगवान शंकर देखकर आनंद प्राप्त करते हैं। मैं बुद्धि की बड़ी भोली हूँ, मेरी एक विनती है। हे नाथ ! मैं और कोई वर नहीं माँगती, केवल यही चाहती हूँ कि मेरा मन रूपी भौंरा आपके चरण-कमल की रज के प्रेमरूपी रस का सदा पान करता रहे॥ पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना॥

जिन चरणों से गंगा निकली हैं, भगवान शिव जिन चरणों को अपने शीश पर धारण करते हैं। जिन चरणकमलों को ब्रह्माजी पूजते हैं, कृपालु हरि (आप) ने उन्हीं को मेरे सिर पर रखा। हे हरि! आपकी अनंत कृपा हैं। इस प्रकार अहिल्या जी ने सुंदर स्तुति गाई हैं और भगवान के धाम को प्राप्त किया हैं।

लीला के अंत में विश्वामित्र जी श्रीराम व लक्ष्मण जी को लेकर गंगा पार कर राजा जनक के स्वयंवर को प्रस्थान करते है।

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