आगरा, 09 जनवरी 2024। 15 माह की शिशु आरबी को अचानक बुखार आने लगा और शरीर में सूजन आने लगी। चिकित्सक की सलाह पर जब उसे उपचार के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) लाया गया तो पता चला कि आरबी को कुपोषण के साथ-साथ सीवियर एनीमिया (खून की अत्यधिक कमी) की भी दिक्कत है। एनआरसी में भर्ती कर सही समय पर उपचार मिलने से आरबी अब पहले की अपेक्षा स्वस्थ्य हो गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि आरबी जैसे कई अति कुपोषित बच्चों में कुपोषण के साथ-साथ एनीमिया की भी समस्या सामने आ रही है। ऐसे में एनआरसी न केवल कुपोषण से मुक्ति दिला रहा है बल्कि बच्चों में एनीमिया का भी इलाज कर रहा है।
बीते एक साल में एनआरसी में उपचार कराने के लिए भर्ती हुए 21 बच्चों में गंभीर स्वास्थ्य समस्या के साथ खून की कमी (एनीमिया) भी मिली। एनआरसी की आहार परामर्शदाता ललितेश शर्मा का कहना है एनआरसी में अति कुपोषित बच्चों को 14 दिन के लिए भर्ती किया जाता है। इस दौरान बच्चे को उसकी जांच के बाद इलाज के साथ साथ पौष्टिक खानपान भी दिया जाता है। बच्चे को यदि कुपोषण के साथ-साथ अन्य स्वास्थ्य जटिलताएं जैसे डायरिया निमोनिया, त्वचा संक्रमण, खून की कमी और पैरों में सूजन आदि है तो एनआरसी में उसका भी उपचार किया जाता है।
ललितेश ने बताया कि एनआरसी में भर्ती बच्चे के साथ में उसकी मां को भी रखा जाता है। यदि बच्चे की मां नहीं है तो घर की अन्य महिला सदस्य भी रह सकती हैं। साथ रहने वाले सदस्य को 50 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से बच्चे के डिस्चार्ज होने पर उसके खाते में दिये जाते हैं। एनआरसी में भर्ती बच्चो के अभिभावकों की भी काउंसलिंग की जाती है। काउंसिलिंग के दौरान कुपोषण के कारणों और पोषण के महत्व के बारे में विस्तार से समझाया जाता है। एनआरसी से डिस्चार्ज होने के बाद अधिकतम चार फॉलो अप किए जाते हैं, ताकि पता चल सके कि परामर्श के अनुसार घर पर भी बच्चों की सही देखभाल की जा रही है या नहीं। प्रत्येक फॉलो अप के लिए भी 140 रुपए अभिभावक के बैंक के खाते में दिये जाते हैं ।
कुपोषण होने के कारण
एनआरसी की मेडिकल ऑफिसर डॉ. नीता चिवटे ने बताया कि किशोरावस्था में किशोरी का कुपोषित होना, कम उम्र में शादी, बार-बार प्रसव, बच्चों में अंतराल ना रखना, मां का कुपोषित होना, संतुलित आहार ना मिलना, सूखा रोग होना और खून की कमी होना जैसे कारक बाल कुपोषण के लिए जिम्मेदार हैं ।
ऐसे सुपोषित हो गयी आरबी
सैंया ब्लॉक के रहलई गांव की निवासी आरबी की मां नीलम ने बताया कि उनकी शादी को दस साल हो गए हैं। उनका पहला बच्चा बेटा शिवम छह साल का है। शिवम के जन्म के चार वर्ष बाद आरबी का जन्म हुआ। वह अब 15 माह की है। जन्म के बाद वह ठीक थी, लेकिन पांच माह पहले अचानक उसे बुखार हुआ और शरीर में सूजन भी दिखने लगा। क्षेत्रीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की मदद से राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के चिकित्सकों की टीम ने आरबी की जांच कराई। इसके बाद टीम ने उसे जिला अस्पताल स्थित एनआरसी में भर्ती करा दिया गया। एनआरसी में डॉ. नीता चिवटे द्वारा आरबी की विभिन्न प्रकार की जांचें हुईं जिनमें खून की कमी भी सामने आई। उसे हाईग्रेड बुखार के साथ दस्त भी हो रहे थे। उसका हीमोग्लोबिन 5.6 था। इसके बाद आरबी को सही पोषण आहार दिया गया और उसे तीन बार में एक यूनिट ब्लड चढ़ाया गया। आरबी के पिता रूपेश ने खून दिया। 14 दिन के बाद आरबी को एनआरसी से डिस्चार्ज कर दिया गया।
उन्होंने बताया कि आरबी को रोजाना हर दो घंटे पर फार्मूला फूड (आहार परामर्शदाता द्वारा दिए गए निर्देश पर तैयार किया गया खिचड़ी, दलिया सहित स्पेशल खाना) खिलाया जाता था। उन्होंने बताया कि आरबी को डिस्चार्ज करने से पहले भी चिकित्सीय जांचें की गई थीं। इसमें सामने आया कि आरबी के वजन और हीमोग्लोबिन के स्तर में सुधार हुआ है। भर्ती होने के समय उसका वजन 6.4 किलोग्राम था और डिस्चार्ज के समय यह बढ़ कर 6.7 किलोग्राम हो गया था। उपचार के बाद में आरबी का हीमोग्लोबिन 8.6 हो गया। वह अब पहले से स्वस्थ है। आरबी का फॉलोअप भी चुका है। नीलम ने बताया कि आरबी को आहार परामर्शदाता ललितेश ने भुने हुए चने, चुकंदर, हरी सब्जियों को लोहे की कढ़ाई में पकाकर खिलाने के लिए कहा है। इसके साथ ही उन्होंने आरबी को विटामिन-सी युक्त नींबू का रस, आंवले का मुरब्बा जैसी चीजें और घर पर पकाए गए खाने की सलाह दी है। घर के बाहर पका हुआ कोई भी खाना न खाने की सलाह दी गयी है।
तीन प्रकार का होता है कुपोषण
बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग में जिला कार्यक्रम अधिकारी आदीश मिश्रा ने बताया कि कुपोषण तब होता है जब किसी व्यक्ति के आहार में पोषक तत्वों की सही मात्रा नहीं होती है। कुपोषण को तीन श्रेणियों में बांटा गया है। कुपोषित, अति कुपोषित और अति गंभीर कुपोषित। अति गंभीर कुपोषित बच्चों एनआरसी में भर्ती किया जाता है। जनपद में लाल श्रेणी में 2691 बच्चे हैं, इसमें 400 बच्चे अति गंभीर कुपोषित श्रेणी में हैं, इन्हें तुरंत उपचार की आवश्यकता होती है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता द्वारा सैम बच्चों वाले परिवार को प्रेरित करके छाया ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता पोषण दिवस (छाया वीएचएसएनडी) के सत्र पर लाकर बच्चों की लंबाई और वजन किया जाता है। लंबाई और वजन के अनुसार जो बच्चे सैम श्रेणी में आते हैं, उन बच्चों की सत्र स्थल पर ही एएनएम द्वारा स्क्रीनिंग की जाती है साथ ही सैम बच्चों को उपचारित भी किया जाता है। सैम बच्चों के उपचार के दौरान एएनएम के द्वारा 6 दवाएं दी जाती हैं। एएनएम द्वारा ऐसे बच्चों का ब्यौरा ई-कवच पोर्टल पर दर्ज किया जाता हैं । एएनएम के द्वारा उन्ही बच्चों को उपचारित किया जाता है जो बच्चे सैम श्रेणी में तो है लेकिन उन्हें कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या नहीं है । जो बच्चे सैम श्रेणी में है और साथ ही उन्हें गंभीर स्वास्थ्य समस्या जैसे बुखार, दस्त, डायरिया, त्वचा रोग आदि है तो ऐसे अति गंभीर कुपोषित बच्चों को तुरंत चिकित्सीय प्रबंधन की आवश्यकता होती है। लाल श्रेणी में आने वाले सभी बच्चों को सर्वप्रथम नजदीकी स्वास्थ्य इकाई पर रेफर किया जाता है। अति गंभीर कुपोषित बच्चों पर ध्यान ना दिया जाए तो जटिलताएं बढ़ सकती हैं। अति गंभीर कुपोषित बच्चों को तुरंत राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की टीम, क्षेत्रीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और प्रभारी चिकित्सा अधिकारी द्वारा जटिलताएं दिखने पर पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) रेफर किया जाता है । एनआरसी में ऐसे बच्चों को भर्ती कराने पर प्रत्येक आशा को 100 रुपए प्रति केस भुगतान करने का प्रावधान है।
एनआरसी में स्वस्थ हुए बच्चे
वित्तीय वर्ष भर्ती होकर स्वस्थ हुए बच्चे
2015-16 – 157
2016-17 – 202
2017-18 – 260
2018-19 – 274
2019-20 – 274
2020-21 – 115
2021-22 – 313
2022-23 – 406
अप्रैल 2023 से अक्टूबर 2023 तक – 233