आजकल फेसबुक पर एक नया चलन देखने को मिल रहा है। जैसे ही कोई शख्स अपने विचार या किसी मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है तभी उसके पक्ष और विपक्ष में समर्थन और विरोधियों के कमेंट की बाढ़ आ जाती है। बात यहां तक हो तो ठीक है लेकिन राजनीतिक मुद्दों पर किसी की भी फेसबुक वाॅल पर ऐसे कमेंट की बौछारें आप देख सकते हैं जिनमें हमेशा गालियां, व्यक्तिगत लांछन, जाति आधारित भद्दे कमेंट की भरमार होती है। कहने को तो वर्तमान में फेसबुक अपनी बात को खुले मंच पर साझा करने का बड़ा सोशल प्लेटफाॅर्म है लेकिन अब ये सोशल प्लेटफाॅर्म एक ऐसा लड़ाई का मैदान बन गया हैं जहां अक्सर अपनी बात दूसरों पर थोपने के लिए हम मान-मर्यादा का सारी हदें पार कर रहे हैं। इसके चलते हम सोशल रिलेशन को जोड़ने के बजाए तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
फेसबुक पर हो रही इस तरह की गतिविधियों को देखकर मेरे लिए इसलिए चिन्तित का विषय होता जा रहा है क्योंकि फेसबुक पर जिन लोगों की राय या प्रतिक्रियाओं पर हम जातिसूचक और भद्दी गांलियों की बौछार कर रहे हैं वे सभी कहीं न कहीं हमारे दोस्त, पड़ौसी या फिर कहीं आते-जाते बने पहचान संबंधों से जुड़े हुए हैं।
जाहिर है कि जब हमने शुरूआती दौर में फेसबुक एकांउट बनाया होगा तब से उसमें हमनें अपने दोस्तों या जानकारों ही अपने फेसबुक में जगह दी होगी कि हम हर एक्टिविटी को उन सबके साथ शेयर कर सकें और उस पर आने वाले कमेंट और लाईक से खुश हो सकें। सभी जानते हैं कि आज टेक्नोलाॅजी के दौर में सभी के पास अपनों से मिलने के लिए समय की कमी हो गयी है जिसे हम सोशल प्लेटफाॅर्म पर उनके साथ जुड़कर उस कमी को पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन अब हमने फेसबुक पर वह चलन भी शुरू कर दिया है जो सरे राह अपनी आंखों के सामने विरोधियों को लड़ते, एक-दूसरे को गाली-गलौज देते और जातिवाद को लेकर समूह संघर्ष देखने को मिलते थे। फर्क सिर्फ इतना है कि प्रत्यक्ष तौर पर ये हमें दो विरोधियों के बीच लड़ाई देखने को मिलती थी जबकि सोशल प्लेटफाॅर्म में खासतौर से फेसबुक पर हम अपनों के साथ ही ये भद्दा खेल खेल रहे हैं।
हांलाकि राजनीतिक मुद्दों पर अपनों को निशाने बनाने की सोशल मीडिया पर बढ़ रही ये बीमारी व्हाट्सअप, ट्विटर और ब्लाॅग वेब पर भी देखी जा सकती है लेकिन इन सोशल प्लेटफार्म पर हम कई ऐसे ग्रुप या पर्सनलिटी को फाॅलो करते हैं जिनमें व्यक्तिगत तौर पर हमारा उनसे कोई सरोकार नहीं होता और उनमें से कई हमारे लिए अनजान होते हैं।
जितनी तेजी से फेसबुक पर ये बीमारी बढ़ रही है उससे हमें आगाह होना होगा और सोचना होगा कि राजनैतिक द्वेष में कहीं हम अपनों पर ही तो हमलावर नहीं हो रहे है। फेसबुक पर बढ़ते आपसी विचारों के संघर्ष से बचना होगा। हमें समझना होगा कि सभी व्यक्तियों के विचार या राय किसी एक मुद्दे पर एक नहीं हो सकते इसलिए जबरदस्ती अपनी बात मनवाने या किसी के राजनीतिक राय पर भद्दे कमेंट देने से बचें। हो सकता है कि कुछ देर के लिए आप उस बहस में जीत हासिल कर लें लेकिन थोड़ी देर बाद अगर उस बारे में आप विचार करेंगे तो आप महसूस करेंगे कि सिर्फ व्यक्तिगत स्वार्थ को पूरा करने के लिए सारी हदें पार कर आप अपने दोस्तों और जानकारों के खिलाफ हो चुके हैं जिनके साथ कुछ दिनों पहले तक अपने हर सुख-दुःख को शेयर किया करते थे।
रही बात राजनीतिक गलियारों की तो पार्टी के राजनैतिक हथकंडे किसी भी हद तक जा सकते हैं। सभी पार्टियां सत्ता में बने रहने के लिए हमें आपस में लड़वा सकती हैं, जाति-पांत में बांट सकती हैं, दंगे करवा सकती हैं और अपनों के रिश ही कत्ल करवा सकती हैं। इस राजनीतिक खेल को हमें समझना होगा। हम फेसबुक पर अपने विचार रखें, दूसरें के विचार से सहमत न हो तो तर्क या तथ्य के आधार पर उसका जवाब दें लेकिन बेवजह ऐसे कोई भद्दे कमेंट न करें कि फेसबुक पर आप से जुड़े लोग असहज की स्थिति महसूस करें।
अन्त में, मेरा सभी फेसबुकियों से विनम्र निवेदन है कि किसी भी मुद्दे या राजनीतिक विषय पर राय रखने से पहले ये विचार लें कि आप जो भी पोस्ट या कमेंट करने जा रहे हैं वह समाज हित में है या नहीं। यू हीं एक-दूसरे के विचारों पर दोषोरण करने और भद्दे कमेंट करने से कुछ नहीं होगा। बस उससे आप के व्यवहार की शालीनता से परिचय हो जायेगा।