आईएमए आगरा ने एथिकल कोड ऑफ़ कंडक्ट की रिपोर्ट जारी है जिसके बाद न केवल डॉक्टर अपनी जिम्मेदारियों को समझेंगे बल्कि मरीजों और तीमारदारों के साथ भी उनके संबंध बेहतर बनेंगे। इससे अस्पतालों में होने वाले विवादों और तोड़फोड़ की घटनाओं में कमी आएगी।
आगरा। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) आगरा ने समूची चिकित्सा प्रणाली को नैतिकता के दायरे में लाने के लिए कमर कस ली है ताकि डॉक्टर और मरीज के बीच बढ़ते हुए विवादों, अस्पतालों में बढ़ती तोड़फोड़ की घटनाओं तथा डॉक्टर और मरीज के बीच घटते विश्वास को रोका जा सके। इस दिशा में पहला कदम बढ़ाते हुए सोमवार शाम तोता का ताल स्थित आईएमए भवन पर आईएमए की मेडिकल एथिक्स एवं एटिकेट्स कमेटी द्वारा एथिकल कोड ऑफ कंडक्ट के संबंध में आईएमए की रिपोर्ट जारी की गई।
एथिकल कमेटी के चेयरमैन डॉ. वीके खंडेलवाल, सदस्य डॉ. मुनीश्वर गुप्ता और डॉ. संजय कुलश्रेष्ठ के साथ आईएमए आगरा के अध्यक्ष डॉ. ओपी यादव, सचिव डॉ. पंकज नगायच, कोषाध्यक्ष डॉ. अरुण जैन, डॉ. मुकेश गोयल, डॉ. दीपक अग्रवाल और डॉ. अरविंद यादव ने कोड ऑफ कंडक्ट की रिपोर्ट का विमोचन किया।
आईएमए आगरा के सचिव डॉ. पंकज नगायच ने बताया कि शीघ्र ही कोड ऑफ कंडक्ट के अनुपालन के लिए 15 सदस्यी अनुशासन समिति का गठन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि चिकित्सा व्यवस्था में नैतिकता के समावेश से कंज्यूमर प्रोटक्शन एक्ट की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी।
अध्यक्ष डॉ. ओपी यादव और डॉ. वीके खंडेलवाल ने संयुक्त रूप से स्पष्ट किया कि कोड ऑफ कंडक्ट की रिपोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर के कर्तव्य और दायित्व, मरीजों के प्रति चिकित्सक के कर्तव्य, एक चिकित्सक की दूसरे चिकित्सक के प्रति जिम्मेदारी, डॉक्टर और फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री के बीच नैतिकता पूर्ण आचरण, अस्पतालों और मरीजों के बीच नैतिक व्यवहार के अलावा चिकित्सकों और अस्पतालों के बीच नैतिक व्यवहार के लिए गाइडलाइंस दी गई हैं।
रिपोर्ट में अत्यधिक विज्ञापन, इन हाउस फार्मेसी और कमीशन खोरी को अनैतिक कृत्य बताया गया है। यही नहीं, प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर्स के बीच नैतिकता को मेंटेन करने, अनैतिक कृत्यों की शिकायत करने और फिर उनके निवारण की दिशा में भी नियमावली दी गई है।
कोड ऑफ कंडक्ट में ये हैं खास बातें
1- एक चिकित्सक को अपने पेशे की गरिमा और सम्मान कायम रखना चाहिए। चिकित्सकीय पेशे का प्रमुख उद्देश्य मानवता की सेवा करना है।
2- एक चिकित्सक को स्टेट मेडिकल काउंसिल द्वारा दिए गए रजिस्ट्रेशन नंबर के साथ अपना नाम और पद अपने प्रिसक्रिप्शन लेटर हेड पर स्पष्ट रूप से लिखना चाहिए।
3- एक चिकित्सक को अपने चेंबर के बोर्ड पर स्पष्ट रूप से अपने परामर्श शुल्क के साथ विजिटिंग फीस और अन्य फीस का विवरण लिखना चाहिए।
4- एक डॉक्टर को ऑपरेशन या अन्य किसी तरह की चिकित्सा में किसी भी ऐसे व्यक्ति का सहयोग नहीं लेना चाहिए जो मेडिकल एक्ट के अनुसार पंजीकृत नहीं है।
5- कन्या भ्रूण को मारने के उद्देश्य से लिंग निर्धारण के लिए परीक्षण किसी भी चिकित्सक को नहीं करना चाहिए।
6- इमरजेंसी के केस में एक फिजिशियन को संबंधित अस्पताल में मरीज भेजने से पहले मरीज का इलाज करना चाहिए।
7- फिजिशियन को मरीज की हालत के बारे में ना तो बढ़ा चढ़ाकर और ना ही बहुत कम करके वर्णन करना चाहिए।
8- डॉक्टर्स को फार्मास्यूटिकल और हेल्प सेक्टर इंडस्ट्री से व्यवहार करते समय उपहार, नकदी या यात्रा सुविधाएं नहीं लेनी चाहिए।
9- अस्पतालों को टीपीए बिलिंग्स में पूर्ण पारदर्शिता बरतनी चाहिए।
10- अस्पतालों में मरीजों को देखने आने वाले डॉक्टर या विजिटिंग कंसल्टेंट के मामले में भी पारदर्शिता बरतनी चाहिए।
11- कॉरपोरेट हॉस्पिटल्स में काम करते समय डॉक्टर्स को अपने वर्क शेड्यूल और पारिश्रमिक के संबंध में एक एमओयू साइन करना चाहिए।
आमजन के लिए भी जारी एडवाइजरी
इस अवसर पर आईएमए द्वारा आम जनता की बेहतर मेडिकल केयर के लिए एक एडवाइजरी भी जारी की गई। इसकी मुख्य बातें इस प्रकार हैं…
1- जो रिश्तेदार मरीज को शुरू में भर्ती करवाने आते हैं, उन्हें बीमारी के खतरे और खर्चे आदि के बारे में विस्तार पूर्वक बताया जाता है। इसलिए बेहतर यही है कि वही तीमारदार वहां मौजूद रहें जिससे रोजाना मरीज के बारे में अपडेट करने में आसानी होगी।
2- जनता डॉक्टरों की वर्षों की मेडिकल की पढ़ाई और तजुर्बे पर भरोसा रखे। गूगल ज्ञान ना बघेरे।
3- तीमारदारों की संख्या वार्ड में और अस्पताल परिसर में सीमित रखें।
4- डॉक्टर भगवान नहीं इंसान होते हैं और मरीज का केवल इलाज करते हैं। मरीज को ठीक करने और बचाने वाले तो भगवान होते हैं। इलाज की गारंटी मांगना नासमझी है।
5- हर दवाई का बिल अवश्य लें। इससे नकली दवाइयों से बचने में सहायता मिलेगी। केमिस्ट से सब्सीट्यूट या अन्य ब्रांड की दवाई न लें।
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