उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के डिस्टिक हॉस्पिटल से मरीज लापता होने पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में सोमवार को राज्य के स्वास्थ्य विभाग पर इस घटना के लिए तल्ख टिप्पणी की है।हाई कोर्ट ने कहा कि मेरठ जैसे शहर के मेडिकल कॉलेज में इलाज का यह हाल है तो छोटे शहरों और गांवों के संबंध में राज्य की संपूर्ण चिकित्सा व्यवस्था राम भरोसे ही कही जा सकती है।इस टिप्पणी करने वाली जजों की बैंच में न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजित कुमार शामिल थे।
दरअसल हाईकोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार, 22 अप्रैल को शाम 7 से 8 बजे के बीच 64 वर्षीय मरीज संतोष कुमार शौचालय गया था जहां वह बेहोश होकर गिर पड़ा। जूनियर डॉक्टर तूलिका उस समय नाइट ड्यूटी पर तैनात थीं। उन्होंने बताया कि संतोष कुमार को बेहोशी के हालत में स्ट्रेचर पर लाया गया और उसे होश में लाने का प्रयास किया गया, लेकिन उसकी मौत हो गई। रिपोर्ट के हिसाब से टीम के प्रभारी डाक्टर अंशु की नाईट ड्यूटी थी, लेकिन वह मौजूद ही नहीं थे।
मिली जानकारी के मुताबिक सुबह डॉक्टर तनिष्क उत्कर्ष ने शव को उस स्थान से हटवाया लेकिन व्यक्ति की शिनाख्त के सभी प्रयास नाकाम साबित हुए। इतना ही नहीं आइसोलेशन वार्ड में उस मरीज की फाइल भी नहीं तलाश कर सके। इस तरह से संतोष की लाश को लावारिस मान लिया गया।अलावा इसके ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर्स भी उसकी शिनाख्त नहीं कर पाए। मृतक संतोष के शव को लावारिस मानकर पैक करके उसे निस्तारित कर दिया गया। इस मामले में अदालत का कहना है कि यदि डॉक्टरों और पैरा मेडिकल कर्मचारी इस तरह का रुख़ अपनाते हैं और ड्यूटी करने में घोर लापरवाही दिखाते हैं तो यह गंभीर दुराचार का मामला है क्योंकि यह भोले भाले लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने जैसा है।