आगरा। तीर्थ नहीं भगवान का धाम है श्रीवृन्दावन। जहां तीर्थों के राजा प्रयाग को भी अपने पाप धोने के लिए आना पड़ता है। वृन्दावन में भक्ति महारानी अपने पुत्र ज्ञान व वैराग्य के साथ नृत्य करतीं हैं। वृन्दावन वह पवित्र भूमि है जहां श्रीकृष्ण ने कंस द्वारा भेजे गए कई राक्षकों का वध कर उनका उद्धार किया। वहीं गोपियों संग महारास, माखन चोरी, ऊखल बंधन जैसी लीलाएं भी रची।
सूर्य नगर समाधि पार्क स्थित मंदिर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन भगवताचार्य श्रीदिनेश दीक्षित ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का संगीतमय वर्णन किया। भगवान कृष्ण का जन्म लेते ही पहरेदार सो गए। वासुदेव व देवकी की बेड़ियां और कारागार के दरवाजे खुल गए। भगवान कृष्ण को लेकर वासुदेव गोकुल गए। गोकुल से योगमाया कन्या को लेकर कारागार में लौटे तो बेड़ियां बंध गईं और दरवाजे बंद हो गए, द्वारपाल जाग गए। अर्थात भगवान के पास में आते हैं तो सारे बंधन खुल जाते हैं। लेकिन माया पास में आती है तो व्यक्ति बंधन में जकड़ जाता है। इसलिए भगवान के निकट रहिए।
पूतना उद्धार, भगवान कृष्ण का नामकरण, माखन चोरी, ऊखल बंधन लीला, श्रीभगवान का गोकुल से वृन्दावन पधारना, वकासुर का वध, कालिया मर्दन आदि लीलाओं का वर्णन किया। गोवर्धन पूजा का वर्णन करते हुए कहा कि यदि लक्ष्य पवित्र और मन में सच्ची भक्ति हो तो ईश्वर भक्त के लिए कुछ भी कर सकते हैं। यही वजह थी कि भक्तों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। आज की आरती सुभाष गोयल ने की।
इस अवसर पर मुख्य रूप से नरेन्द्र द्विवेदी, पार्षद शरद चौहान, वीरेन्द्र शर्मा, डॉ. महावीर सिंह राजपूत, भावना मिश्रा, सुनीता चौहान, डॉ. डीपी शर्मा, डॉ. सुवर्चा आदि मौजूद रहे।