आगरा। मुश्किल को समझने की तरीका निकल आता, तुम बात तो करते की रास्ता निकल आता…। स्पाइसी शुगर संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘तुम बात तो करते…’ में कवि विनीत पंछी के साथ ऐसी महफिल जमी कि मन की गहराईयों में डूबे रिश्तों से लेकर उथले और सतह पर तैरते जज्बातों पर खुलकर चर्चा हुई। फिल्म मेकर व कवि विनीत पंछी ने अपनी नज्मों का सिलसिला छेड़ा तो उसमें किसी न किसी श्रोता ने अपने रिश्तों सच्चाई को तलाश ही लिया। किसी न किसी किरदार में खुद को खड़ा पाया। बचपन की पड़ाई, यारी दोस्ती, माता-पिता की डांट फटकार और प्यार और जीवनसाथी की नोंक-झोक और प्यार सब कुछ था।
अपनी पहली रचना सुनाते हुए विनीत पंची ने कहा कि बात ये है कि क्लास में सिखाया गया है कि जो बच्चे फर्स्ट आते हैं, वही लायक हैं। सारे ईनाम अगर रिपोर्ट कार्ड से जुड़े हो तो फिर पीछे के किस लायक हैं। अव्व्ल आने वाला हमेशा खुश हो तो समझ में भी आता है, या फिर ये समझाओं कि जो खुश है उसे अव्व्ल क्यों नहीं माना जाता है। अव्वल की एक नई परिषाभा बनाते हैं, यार एक नई आस बंधाते हैं, जो जिन्दगी को हर पल जीते हैं, उनको क्लास टॉप कराते हैं।
कुछ उलझी कुछ कड़वी थी पर जीवन की सच्चाई थी। धीमी आंच पर कुछ रिश्तों को धीमे धीमे पकाया है… और मुझे अपना हर पुराना रिश्ता अपना पुराना मकान सा लगता है…, कोई ऐसा रिश्ता ढूंढों जिससे बात कर सको… जैसी नज्मों ने जीवन के उलझे रिश्तों को सरल बनाने का तरीका सिखाते हुए अपनी बताया कि किस तरह पकने पर रिश्तों को पलटना पड़ता है। तेज आंच में जलें न इसलिए चूल्हे के पास खड़े रहना पड़ता है।
संस्था की अध्यक्ष पूनम सचदेवा ने विनीत पंछी का परिचय देते हुए अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से डॉ. किशोर पंजवानी, डॉ. नरेन्द्र मल्होत्रा, चांदनी ग्रोवर, पावनी सचदेवा, मोनिका बजाज, निधि वाधवा, निष्ठा गोयल, रिचा जैन, कोमिला शालिनी अग्रवाल, स्नेहा जैन, चंद्रसेन सचदेवा, वीना सचदेवा, गरिमा हेमदेव, पुष्पा पोपटानी, जया असवानी, सारिका कपूर आदि उपस्थित रहीं।
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