आगरा। आयोध्या से गाजे बाजे के साथ मिथिला आयी बारात में सजे धजे बाराती। भक्ति के उत्सव की ऐसी उमंग जिसे कोई उपमा देना असम्भव था। दूल्हा रूप में ब्रह्म स्वरूप श्रीराम और भक्ति स्वरूपा दुल्हन रूप में श्रंगारित सिया। आसन पर विराजमान गुरुजन, शरीरधारी बा्रह्मण रूप में उपस्थित चारों वेद। गुरु गांठ और वेद मंत्रों के पाठ के साथ हवन कुण्ड में अग्नि स्वतः प्रकट हो उठी। मिथिला के घर-घर में मंगल गीत गूंज रहे थे। ब्रह्म स्वरूप दूल्हा-दुल्हन को नजर न लगे इसके लिए राई और नमक उसारा जा रहा था। सिया रघुवर जी के संग पड़न लाहि भावरिया…जैसे गीतों पर हर भक्ति और प्रेम के रंग बिखरे थे।
मंगलमय परिवार द्वारा सीता धाम (कोठी मीना बाजार) में श्रीराम कथा में आज संत श्री विजय कौशल जी ने सियाराम के विवाह का वर्णन किया तो हर तरफ भक्ति का प्रेम बिखर गया। माण्डवी का भरत, उर्मिला का लक्ष्मण और श्रुतिकीर्ति का शत्रुघ्न के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। वहीं सीता जी की विदाई के समय हर श्रद्धालु की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी। मानों अपनी बेटी की विदाई की कथा सुन रहे हों। जानकी जी की विदाई पर समस्त मिथिला के साथ पशु पक्षी, पेड़ पौधे भी रोने लगे वहीं अयोध्या में मंगल शगुन होने लगे। संत श्रीविजय कौशल जी ने कहा कि नारायण के सभी दस अवतारों में दूल्हा सिर्फ श्रीराम ही बने। आरती के साथ कथा विश्राम के उपरान्त पर सभी भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया।
मधु बघेल, रेखा अग्रवाल, पुष्पा अग्रवाल, बीडी अग्रवाल, लक्ष्मण प्रसाद गोयल, नितेश अग्रवाल, अनीता गोयल, संजय गुप्ता, अतुल गुप्ता, ब्रजमोहन अग्रवाल, अजय कंसल, डिम्पल अग्रवाल, वंदना गोयल, रितु अग्रवाल, पूजा भोजवानी, सुनीता अग्रवाल, सुनीता फतेहपुरिया, नीलू अग्रवाल, प्रतिभा जिन्दल आदि उपस्थित थीं।
राजनीति ने महापुरुषों को भी छोटा कर दिया
महापुरुष किसी समाज विशेष के नहीं बल्कि सम्पूर्ण समाज के होते हैं। परन्तु आज की राजनीतिक ने महापुरुषों को भी जातियों में बांट दिया है। न तो परशुराम ब्राह्मण थे और न ही श्रीराम क्षत्रिय। वह ब्रह्म थे। ब्रह्म की कोई जाति नहीं होती। जन्म तो किसी न किसी व्यवस्था में ही लेना होगा। देश का राजनैतिक वातावरण बहुत विषैला हो गया है। पूरी राजनीतिक जाति पर ही केन्द्रित हो गई है। राजनैतिक लोगों ने महापुरुषों को भी छोटा कर दिया है। परशुराम जी में ब्राह्मणवाद होता तो वह श्रीराम की स्तुति (जय रघुवंश बनजु वन भानु…) कर उनकी आराधना नहीं करते।
जो काम तलबार नहीं करती वह वाणी कर देती है
श्रीराम द्वारा शिवजी का धनुष तोड़ने के उपरान्त क्रोध में मिथिला पहुंचे परशुराम और लक्ष्मण के बीच हुए संवाद का वर्णन करते हुए संतश्री विजय कौशल महाराज ने कहा कि परशुराम का वाणी बहुत अशिष्ट थी। वाणी हमेशा श्रेष्ठ और मधुर होनी चाहिए। जो काम तलवार नहीं करती, वह वाणी कर देती है। जिनकी गोद में भक्ति महारानी बिटिया बनकर खेलने आयी, ब्रह्म बिना बुलाए जनकी जी के द्वार पर आए ऐसे सूर्य के प्रताप के समान ज्ञानी राजा जनक का भरी सभा में अपमान कर दिया। जीभ को रसना कहा गया है।
बच्चों को सुधारने के लिए पहले खुद अच्छी बातों का अनुसरण करें
सुखद परिवार का सूत्र देते हुए कहा कि बच्चों को सुधारने का प्रयास करने के बजाय खुद अच्छी बातों और वाणी का अनुसरण करें। बच्चे वही करते हैं जो बड़े करते हैं। कहा परिवार में मंत्रों से नहीं छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करने से शांति आती है। जब बच्चों का युग आ जाएं तो ज्यादा दखलअंदाजी बंद कर उनके साथ खड़े रहें। बच्चों की पीठ थपथपाएं, उत्साहित करें। आदेशात्मक नहीं सुझात्मक बात कहिए।