आगरा। ‘दुनियां में चाहे जैसे रहें, लेकिन ईश्वर के सामने दीन बनकर ही बैठें। ईश्वर दयाल और हम दीन है। हमारा कटोरा जब सीधा रहेगा तभी उसमें ईश्वर का अमृत पहुंचेगा। पहाड़ों पर कभी बारिश का पानी नहीं ठहरता, क्योंकि वह अहंकार से तने रहते हैं। सरोवर, नदियां में गहराई (दीनता) है, इसलिए वहां पानी ठहरता है।’ श्रीहरि सत्संग समिति द्वारा आरबीएस कालेज के सभागार में आयोजित तीन दिवसीय सुन्दरकाण्ड मीमांसा (श्रीराम कथा) में आज संत अतुल कृष्ण भारद्वाज ने मीरा चरित्र और सुन्दरकाण्ड की संगीतमय चौपाईयों संग आर्शीवाद और भक्ति का वर्णन किया।
संत अतुल भारद्वाज ने कहा कि 5000 वर्ष में हमारे पास दो ही प्रमाणित ग्रंथ हैं। महाभारत और श्रीमद्भागवत। दोनों ही ग्रंथों में राधा नाम नहीं है। लेकिन श्रीराधा और जानकी माता दोनों भक्ति की अवतार है, दोनों का ही जन्म अनुराधा नक्षत्र में हुआ। दोनों को परमानंद चिनमूर्ति कहा गया। परमानंद वह अवस्था है जब इंद्रियों के नियंत्रण से ऊपर उठकर हमारा मन हमेशा आनंद में रहता है।
सुन्दर सदन सुखद सब सब पावा, तहां वाल दे दीन भुआला… दोहे के माध्यम से बताया कि जनकपुरी में सीता जी के भवन का नाम सुन्दर सदन था। कहा कि काल कबी एक जैसा नहीं होता। कभी आप जमीन से पैर मारे तो जल निकल आए और एक काल में सीढ़ी भी पकड़ कर चलनी पड़ती है। मौसम की तरह काल (परिस्थिति) भी बदलते हैं। लेकिन मनस्थिति अच्छी रहे तो हर काल में व्यक्ति सुख प्राप्त कर सकता है। कहा कि आज के दौर में डायबिटीज, डिप्रेशन, हृदयरोग और बीपी मन की बीमारियां हैं। मन को स्वस्थ और सुन्दर रखेंगे तो बीमारियों से भी दूर रहेंगे।
काटो मन के फंदा भजो रे मन गोविन्दा…
श्रीहरि के भजन से लोक और परलोक दोनों सिद्ध हो जाते हैं। मीराबाई के दोहे काटो रे मन के फंदा, भजो रे मन गोविन्दा… की व्याख्या करते हुए समझाया कि श्रीहरि के भजन से यम की फांस भी कट जाती है। जो लोग भगवान से जुड़े रहेंगे, अन्त में उनके जीवन का निष्कर्ष सुन्दर ही होगा। अन्तः नारायणे स्मृति। उन्हें लेने श्रीहरि का विमान ही आता है। श्रीहरि ने स्तनपान कराने वाली पूतना को भी मां का स्थान दिया, इसीलिए उसकी चिता जलाने पर भी हर तरफ खुखबू बिखर गई।