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आगरा में गांधी जी का वह स्थान जो आज करता है समाज को प्रेरित

by admin

आगरा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की यादें वैसे तो हर दिल में बसती हैं, लेकिन कुछ ऐसे स्थान भी हैं, जो आज भी उनके बताए गए मार्गों पर चलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। ऐसा ही एक स्थान है आगरा में है जहाँ गांधीजी ने पूरे देश को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया था और अपने इन्हीं सिद्धांतों से भारत को 1947 में आजाद करवाया था। गांधी जी दिल्ली में 30 जनवरी 1948 को प्रार्थना सभा के लिए जा रहे थे। तब नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी थी। राष्ट्रपिता की कुछ ऐसी ही यादों को समेटे हुए आगरा के जामुन ब्रिज पर बनाया गया गांधी स्मारक अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। महात्मा गांधी आगरा के इस स्थान पर 11 दिन तक अपने स्वास्थ सुधार के लिए यहां ठहरे थे।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वतंत्रता आंदोलन के समय अपने वृहद जनसंपर्क अभियान के अंतर्गत 10 सितम्बर 1929 से 21 सितम्बर 1929 तक इस स्थान पर ठहरे थे। इस दौरान बापू आगरा के प्रमुख जौहरी एवं व्यवसाई रामकृष्ण मेहरा के अतिथि रहे। सन 1948 में गांधी जी के निधन के उपरांत रामकृष्ण मेहरा के पुत्र बृजमोहन दास मेहरा ने इस भवन एवं परिसर को गांधी स्मारक के लिए दान किया। मुख्य भवन मराठा शैली में निर्मित दो मंजिला भवन है। वर्षों तक नगर प्रसूति अस्पताल, जच्चा बच्चा कल्याण केन्द्र तथा आयुर्वेदिक चिकित्सालय के रूप में संचालित रहा। वर्ष 2015 में जीर्णोद्धार के उपरांत इसे गांधी स्मारक एवं संग्रहालय के रूप में पुनर्जीवित किया गया। यह बताया जाता है कि 1929 में महात्मा गांधी यमुना किनारे गांधी स्मारक में स्वास्थ्य सुधारक के लिए इस स्मारक में 11 दिन हकीम से दवा कराने के लिए रुके थे।

यमुना किनारे बसे गांधी स्मारक पर अद्भुत नजारा है। चारों तरफ हरियाली है। बापू जिस स्थान पर ठहरे थे, उस स्थान पर विशाल और आकर्षक सफेद रंग का भवन बनाया गया है। कुछ समय तक उजाड़ पड़े रहने वाले गांधी स्मारक को अब नगर निगम द्वारा संरक्षित किया गया है।

इस स्मारक की देखरेख कर रहे रमेश चंद्र यादव का कहना था कि जिस तरह से आगरा ताजमहल के लिए जाना जाता है उसी तरह से गांधी आश्रम की भी पहचान आगरा में है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को मारने वाला और उनके पद चिन्हों पर चलने वाला हर व्यक्ति गांधी जी के इस आश्रम को देखने के लिए जरूर आता है। गांधी जी यहां पर अपने खराब स्वास्थ्य के कारण रुके थे। महात्मा गांधी जी से मिलने के लिए दिन भर तांता लगा रहता था और वह भी सुचारू रूप से अपना चरखा चलाते हुए लोगों से वार्ता करते रहते थे। आजतक इस धरोहर को संजोय के रखा गया है।

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