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बटेश्वर मेला को लेकर चिंतित हैं पूर्व मंत्री अरिदमन सिंह, जाने क्यों

by admin

आगरा। बाह तहसील के यमुना किनारे तीर्थ बटेश्वर में उत्तर भारत का लगने वाला प्रमुख बटेश्वर मेला अपनी पहचान खोता जा रहा है, जिसे लेकर पूर्व कैबिनेट मंत्री राजा अरिदमनसिंह चिंतित दिखाई दे रहे हैं। सैकड़ों पुराना यह मेला अपनी ख्याति के लिए मशहूर था जो आज धीरे-धीरे अनदेखी के चलते सिमिटता जा रहा है। छोटी काशी से नाम से मशहूर तीर्थ बटेश्वर अपनी पहचान का मोहताज नहीं है, मगर यहां लगने वाला वार्षिक बटेश्वर मेला जिला पंचायत की अनदेखी के चलते अपनी पहचान खोने पर मजबूर है।

बटेश्वर मेले को लेकर पूर्व कैबिनेट मंत्री ने पिनाहट पहुंचने पर बटेश्वर मेले की तैयारियों पर बताया कि बटेश्वर मेले में अवस्थाएं हर वर्ष बढ़ती जा रही हैं। मेला सिमटता हुआ जा रहा है, जिसे लेकर वह चिंतित है साथ ही ऐतिहासिक बटेश्वर मेला नगर विकास के प्रस्ताव के बाद प्रदेश स्तरीय मेला घोषित हो जिससे मेला विख्यात होगा। मेले में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों सभी व्यवस्थाओं को प्रदेश सरकार द्वारा देखा जाएगा और अवस्थाएं ठीक होंगी।

पूर्व मंत्री ने अपना सुझाव देते हुए कहां मेले को सरकार जिला पंचायत से हटाकर जिला प्रशासन को सौंपे, जिससे देवा शरीफ मेला जैसी व्यवस्थाएं होंगी, बटेश्वर मेले में व्यवस्थाओं को लेकर उन्होंने कहा कि मेले की तारीख तय नहीं होती है। मेले की रुचि किसी को नहीं है, वार्षिक मेले पर पूरा कार्य ठेकेदारों को सौंप दिया जाता है। पूर्व में कमिश्नर, जिला अधिकारी अधिकारियों के साथ बटेश्वर में ही बैठक कर चाक-चौबंद व्यवस्थाओं को देखते थे और देखते थे व्यवस्थाएं ठीक है कि नहीं। मेले में हर वर्ष अब जिला पंचायत एवं अधिकारियों द्वारा सिर्फ खानापूरी की जाती है।

पूर्व मंत्री ने बताया के पूर्व कमिश्नर अमृत अभिजात के जाने के बाद मेले का स्तर ज्यादा गिर गया और बटेश्वर मेले में लगातार अवस्थाएं फैलती जा रही हैं, वही प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का आश्वासन है कि ऐसे प्राचीन संस्कृत मेलो को बढ़ाया जाएगा, मेले के साथ ही घाटों और मंदिरों का भी जीर्णोद्धार होगा। उन्होंने बताया कि जल्द ही बटेश्वर मेले को लेकर विधायक रानी पक्षालिका के साथ वह मुख्यमंत्री जी को इस बारे में अवगत कराएंगे ताकि उत्तर भारत के प्रमुख प्राचीन बटेश्वर मेला को संस्कृत और धरोहर के लिए बचाया जाए। वार्षिक लगने वाला पशुओं और लोक मेला का आयोजन लगातार होता रहे।

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