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आवास विकास परिषद में भ्रष्टाचार का बड़ा मामला, डेढ़ करोड़ के भवन को आधे दाम में बेचने की तैयारी

by admin

आगरा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कितने भी प्रयास कर ले लेकिन न तो भ्रष्टाचार खत्म हो रहा है और न ही भ्रष्टाचारियों पर नकेल कस पा रही है। भ्रष्टाचार का नया मामला आवास विकास परिषद से जुड़ा हुआ है।

परिषद के अधिकारी द्वारा डेढ़ करोड़ के भवन को 70 लाख में बेचने की तैयारी हो गयी है। यह भवन कमला नगर पॉश कॉलोनी में एमआईजी F 641 है जिसे गलत तरीके से बेचने की तैयारी है। इस भवन से संबंधित एफिडेविट तत्कालीन संयुक्त आवास आयुक्त रेनू तिवारी ने हाई कोर्ट में दिया है जिसमे इस भवन की कीमत डेढ़ करोड़ रुपए और इस भवन पर कोई विवाद न होना दर्शाया गया है। आवास विकास परिषद के अधिकारी द्वारा इस भवन को हलेश कुमार नाम के व्यक्ति को बेचा जा रहा है।

बड़ी बात यह है कि यह पूरा मामला सर्वोच्च न्यायालय में है। अधिकारियों के सताए एक पीड़ित ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की है जिस पर सुनवाई चल रही है लेकिन भ्रष्ट अधिकारी अपनी गर्दन बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन मामले को दरकिनार करते हुए अपनी तानाशाही दिखा रहे हैं।

आवास विकास परिषद में भ्रष्टाचार का यह खेल 1998 से चल रहा है। बताया जाता है कि संजीव सिसौदिया नाम के व्यक्ति को तत्कालीन कमिश्नर रविशंकर ने विनिमय अधिनियम 48 की पावर का इस्तेमाल करते हुए अलॉट किया था लेकिन कुछ दिनों बाद पुष्पा देवी जिनका विवाद आवास विकास से भूमि अर्जन मामले में चल रहा था, उस विवाद में कोर्ट ने आवास विकास पर ₹41000 की रिकवरी निकाली थी। आवास विकास ने पुष्पा देवी की जमीन को अधिग्रहण किया था लेकिन भुगतान नहीं किया था। इस मामले से बचने के लिए तत्कालीन आवाज विकास के सहायक अभियंता सत्येंद्र कुमार ने कोर्ट में एफ 641 mig1 कमला नगर को खाली बताकर और कोई विवाद ना होने का हवाला देकर कोर्ट से अटैच करा दिया। इस पूरे खेल में संलिप्त आवास विकास परिषद के अधिकारियों ने सांठगांठ करते हुए इस भवन की पावर ऑफ अटॉर्नी हलेश कुमार के नाम कर दी।

पीड़ित सिसोदिया ने इस मामले की शिकायत तत्कालीन सुपरिटेंडेंट इंजीनियर हरि गोपाल से की थी। उन्होंने अपनी जांच कराई और सहायक अभियंता को दोषी पाया। उन्होंने इस मामले में जिला जज के यहां अपील की और अटैच हुए भवन की नीलामी को गलत बताते हुए उसे निरस्त कराकर स्टे ले लिया। इतना ही नहीं तत्कालीन सुपरिटेंडेंट इंजीनियर हरि गोपाल ने दोषी सहायक अभियंता की एसीआर लिखी और उसमें लिखा कि सहायक अभियंता सत्येंद्र कुमार भू माफिया है और उसे दोबारा आगरा में तैनाती ना दी जाए।

आवास विकास परिषद इस मामले को लेकर हाईकोर्ट पहुंचा। हाईकोर्ट में पीड़ित ने भी अपना पक्ष रखा। 15 मार्च 2015 को हाईकोर्ट के जज ने पूछा कि इस मकान को आवास विकास परिषद के अधिकारियों ने कैसे अटैच कर दिया और इससे संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई करने के भी निर्देश दिए, साथ ही तत्कालीन कमिश्नर को भी तलब किया गया था। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी इस पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और हाल ही में संयुक्त आवास आयुक्त रेनू तिवारी ने हाईकोर्ट में एफिडेविट दिया कि इस भवन पर कोई विवाद नहीं है और इस भवन की कीमत डेढ़ करोड़ रुपए है।

अब सवाल यह भी उठता है कि जब आवास विकास परिषद की संयुक्त आयुक्त रेनू तिवारी जब एफिडेविट देकर इस भवन की कीमत डेढ़ करोड़ बता रही है तो फिर अधिकारी से 70 लाख में कैसे बेच सकते हैं। इस पूरे मामले को लेकर पीड़ित संजीव सिसोदिया ने हार नहीं मानी। पीड़ित ने 9 अक्टूबर 2019 की बोर्ड की हुई बैठक में भी इस मामले को रखा लेकिन फिर भी कोई उचित कार्यवाही नहीं हुई बल्कि इस पूरे मामले में अधिकारियों द्वारा एफिडेविट दिखाकर रजिस्ट्री का प्रावधान किया जा रहा है।

बताया जाता है कि इस पूरे मामले में आगरा के साथ-साथ लखनऊ व अन्य जिलों के भी अधिकारी शामिल हैं जो दोषी अधिकारियों को बचाने के लिए पूरा जाल बिछा रहे हैं जिससे इस पूरे मामले के मुख्य आरोपी को बचाया जा सके लेकिन जिस तरह से न्यायालय के आदेशों की अवहेलना आवास विकास परिषद के अधिकारी कर रहे हैं उससे साफ है कि उन्हें अब किसी भी तरह का भय नहीं है।

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