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धूमधाम से शुरू हुआ 550वां प्रकाशोत्सव, जानिए गुरुद्वारा गुरु का ताल का अनूठा इतिहास

by admin

आगरा। गुरुद्वारा गुरु का ताल स्थित गुरुद्वारा मंजी साहिब में गुरु नानक देव के 550 साला प्रकाशोत्सव को बड़े ही श्रद्धाभाव के साथ मनाया जा रहा है। सुबह से ही गुरुद्वारे में सबद कीर्तनों का दौर चल रहा है। हजारों की संख्या में पहुँची संगत यहां पहुँचकर मत्था टेक गुरु को प्रणाम कर रहे हैं। गुरुद्वारा गुरु के ताल पर धार्मिक अद्भुद दृश्य देखने को मिल रहा है। भव्य सजावट के कारण गुरुद्वारा गुरु का ताल अदभुत छटा बिखेर रहा है।

गुरुद्वारा गुरु के ताल पहुँच समूह संगत प्रकाशोत्सव में शामिल होने के साथ ही दरबार साहिब और भोरा साहिब के दर्शन कर रहे है। बताया जाता है कि गुरुद्वारा गुरु के ताल का इतिहास वर्षों पुराना है। यहीं पर सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर जी महाराज को औरंगजेब के सैनिकों ने नौ दिन नजरबंद रखा था। गुरुद्वारा गुरु के ताल में स्थित उस पवित्र स्थान को आज भोरा साहिब के नाम से जाना जाता है। तभी से यह स्थल उत्तर भारत में सिख पंथ के प्रचार-प्रसार के प्रमुख केंद्र बन गया।

बताया जाता है कि औरंगजेब ने तख्तनशीं होने के बाद धर्मांतरण की प्रक्रिया तेज कर दी थी। अपने सूबेदार शेर अफगान को कश्मीरी ब्राह्मणों को जबरिया मुसलमान बनाने का हुक्म दिया। फरमान था कि उन्हें इस्लाम कुबूल करने को कहा जाए और जो न माने उसे कत्ल कर दिया जाए। यह सूचना जब कश्मीरी ब्राह्मणों तक पहुंची तो वह विचार के लिए कुछ दिन की मोहलत मांग अमरनाथ यात्रा पर चले गए। यहां से उन्हें आनंदपुर साहिब में गुरु तेग बहादुर की शरण में जाने की प्रेरणा मिली। कश्मीरी ब्राह्मण कृपाराम दत्त की अगुवाई में उन्होंने गुरु जी महराज से मिलकर अपनी वेदना बताई। उन्होंने सुझाव दिया कि वे मुगलों से कह दें कि हमारे पीर सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर हैं। वे मुसलमान बन जाएं तो सब खुद ही मुसलमान बन जाएंगे।

औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को दरबार में हाजिर करने का हुक्म दिया लेकिन वे मुगलों के हाथ नहीं लगे। उन पर पांच सौ मोहरों का ईनाम घोषित किया गया। इस दौरान वे हरियाणा होते हुए आगरा पहुंचे और यहां यमुना किनारे डेरा डाल दिया। गुरु महराज ने सब पहले से निश्चय कर रखा था कि करना क्या है। उनके साथ कुछ विश्वस्त साथी थे। यहां उन्होंने ककरेटा के एक गरीब चरवाहे हसन अली खां को पानी लाने को कहा। खारा पानी होने के कारण वह बार-बार उसमें बकरी का दूध मिला देता। गुरु जी ने कारण पूछा तो उसने बताया कि पानी खारा है। इस पर गुरु जी ने कहा, पानी खारा नहीं हजारा (मीठा) है। सचमुच पानी मीठा हो गया।

बताया जाता है कि गुरु तेग बहादुर महराज स्वयं को गिरफ्तार कराने आये थे लेकिन गिरफ्तारी से पहले उन्होंने इस गरीब चरवाहे की मदद की। उन्होंने उसे अंगूठी और कीमती दुशाला देकर बाजार से खाने-पीने का कुछ सामान लाने को कहा। चरवाहे के पास दुकानदार ने कीमती अंगूठी देख कोतवाल को सूचना दे दी। सूचना पर औरंगजेब की सेना पहुँची और गुरु तेग बहादुर जी को गिरफ्तार कर लिया गया और ईनाम की रकम हसन को मिल गई। बताया जाता है कि गुरु महाराज और उनके साथियों को गिरफ्तार करने के बाद यही एक तहखाने में रखा गया था। नौ दिन तक इस तहखाने में रखने के बाद उन्हें दिल्ली दरबार में पेश किया गया, जहां औरंगजेब ने उन्हें मुसलमान बनने पर जीवित रहने की शर्त रखी लेकिन गुरु महाराज में मानने से इंकार कर दिया जिससे आक्रोशित होने पर औरंगजेब ने उनकी हत्या करा दी।

जिस तहखाने में गुरु तेग बहादुर जी महराज को नौ दिन तक नजरबंद रखा गया था आज वह स्थान भोरा साहिब के नाम से जाना जाता है जो सिख समाज की आस्था का प्रमुख केंद्र है।

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