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गुरु के ज्ञान को आत्मसात करने का पर्व है गुरु पूर्णिमा

by admin

गुरु के प्रति असीम श्रद्धा-समर्पण के भाव की अभिव्यक्ति के लिए गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। जिन्होंने सारे विश्व को महान ज्ञान दिया, ऐसे परम विद्वान वेदव्यास जी का अवतरण आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था। इसलिए इस पूर्णिमा को हम गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। यह एक पर्व ही नहीं बल्कि एक गहन प्रतीक है। इस उत्सव को हम सदियों से मनाते आ रहे हैं। गुरु पूर्णिमा बोध पर्व है। गुरु के ज्ञान को आत्मसात करने का पर्व है। गुरु की महिमा को आत्मसात करने और उसे समझने का पर्व है।

क्या होती है गुरु की महिमा

गुरु शब्द का अर्थ अज्ञान रुपी अंधकार का नाश करना और ज्ञान रुपी प्रकाश को उत्पन्न करना है। गुरु की कृपा के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता और ना ही हम जीवन में आत्मिक प्रगति कर सकते हैं। गुरु से मिलना बड़ा दुष्कर है बड़ा कठिन है लेकिन कठिन इसलिए नहीं कि गुरु नहीं है बल्कि इसलिए कि अपने गुरु को पहचानने के लिए हमारे पास दृष्टि नहीं हैं। लेकिन गुरु के पास अपने शिष्य को स्थूल और सूक्ष्म रुप से जानने और पहचानने की अलौकिक दृष्टि होती है। गुरु शिष्य की साधना और तपस्या अद्भुत होती है। अगर एक बार गुरु का सच्चा सानिध्य शिष्य को मिल जाए उसका जीवन सार्थक हो जाता है।

कैसे मनाते हैं गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा पर्व 1 साल में एक बार ही आता है। इस पर्व में हम गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा को अभिव्यक्त करते हैं और उनके प्रति अपने समर्पण को जगाते हैं। वास्तव में जिस गुरु के सानिध्य में हमने अपने जीवन को सार्थक बनाया या आध्यात्मिक रूप में तरक्की की तो उस गुरु के प्रति श्रद्धा का भाव प्रकट करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है।

गुरु शिष्य का अटूट बंधन

शिष्य गुरु से कभी अलग नहीं होता और गुरु भी शिष्य से कभी अलग नहीं होता। गुरु अपने शिष्य की पल पल की खबर होती है। गुरु और शिष्य का संबंध और साधना अद्भुत है। गुरु पूर्णिमा पर भी हमें यही संदेश देता है कि शिष्य को गुरु के प्रति सानिध्य और तपस्या सच्चे मन से करना चाहिए। परमात्मा की पूर्णता को गुरु प्राप्त करता है और गुरु की पूर्णता को शिष्य प्राप्त करता है और शिष्य को जब गुरु की पूर्णता प्राप्त हो जाती है तो समझ लो कि गुरु पूर्णिमा का पर्व उस शिष्य के लिए सार्थक हो गया।

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